सावन में कजरी की परंपरा आज भी गांवो में जीवन्त है
जौनपुर। रिमझिम सावन के फुहारो की बीच बागों में झूला झूलती महिलाओ की सुरीली आवाज से निकलती कजरी गीते पूरे वातावरण को खुशनुमा बना दिया करती थी। आज आधुनिकता के चकाचौध ने इस परम्परा को इतिहास के पन्नो पर पहुंचा दिया है ऐसे में जौनपुर के कुछ गांवो में आज भी यह परम्परा कायम है। सावन माह के पहले ही दिन से इन गांव में पेड़ पर झूला पड़ जाता है महिलाएं समूह में झूला झूलते हुए परम्परागत कजरी गीत गा रही है। ऐसा ही नजारा दिखा जलालपुर थाना क्षेत्र के लालपुर गांव में। यहां पर महिलाएं ,बच्चे बच्चियां पेड़ पर पड़े झूला झूलते हुए कजरी गीत गा रही है। इस मनोहारी परम्परा को देखने वालो का ताता लग जाता है। सावन में रिमझिम फुहारों, बागों में झूला झूलती कजरी गाती गोरी अपने पिया के प्रति कभी आभार तो कभी संवेदना तो सभी विरह रस को अपने गीतों में अभिव्यक्त करने का अपना अलग महत्व है। इससे इतर गोरी-गोरी हथेलियों पर मेहंदी की लाली श्रृंगार रस को दर्शाता है। जबकि कजरी गीतों के माध्यम से परदेशी पिया की याद में विरह वेदना, सास, ननद की ताने, देवर-भाभी की मीठी मनुहार, काले-काले बादलों से पिया तक अपनी संवेदनाओं को पहुंचाने का