कलुषित उर की भावना से, दबा हुआ है देश, राष्ट्र विरोधी दे रहे है,भारत को क्लेष
करे समुन्नत राष्ट्र नित, राष्ट्र प्रेम आधार।। घर में सुख समृद्धि हो,छोटा हो परिवार।। कलुषित उर की भावना,अन्तर्मन में द्वेष।। राष्ट्र विरोधी दे रहे हैं, भारत को क्लेष।। जनसंख्या के भार से,दबा हुआ है देश।। लघु कुटुम्ब की भावना, शिक्षा स्वास्थ्य विशेष।। दाना पानी देश का ,मान और सम्मान।। गद्दारी है देश से ,बैरी का गुनगान।। बैरी परम गिरीश के,लगा रहे हैं आग।। फन काढ़े फुफकारते,अगणित-अगणित नाग।।