जानते है जनता ने किस बाहुबली को बनाया माननीय तो जनता ने किसे नकारा है


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कई रिकॉर्ड बने। जनता ने इस चुनाव में कई बाहुबलियों को नकार दिया। भदोही की ज्ञानपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरे विजय मिश्रा, जौनपुर की मल्हनी सीट से धनंजय सिंह, सुल्तानपुर की इसौली सीट से मोनू सिंह और नौतनवां से अमन मणि सिंह को हार का सामना करना पड़ा।  उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कई रिकॉर्ड बने। जनता ने इस चुनाव में कई बाहुबलियों को नकार दिया। भदोही की ज्ञानपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरे विजय मिश्रा, जौनपुर की मल्हनी सीट से धनंजय सिंह, सुल्तानपुर की इसौली सीट से मोनू सिंह और नौतनवां से अमन मणि सिंह को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि कई बाहुबली विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। इनमें कुंडा से सात बार के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया, गोसाईगंज से अभय सिंह और चंदौली के सैयदराजा सीट से भाजपा उम्मीदवार सुशील सिंह शामिल हैं। अभय सिंह दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे हैं। इस बार उन्होंने गोसाईंगंज सीट से जीत हासिल की थी। वह 2012 से 2017 तक विधानसभा सदस्य रहे। 2017 में उन्हें खब्बू तिवारी ने हरा दिया था। एक बार फिर वह विधानसभा पहुुंचने में कामयाब हो गए।
इसी तरह सुशील सिंह चौथी बार विधानसभा पहुंचे हैं। उनकी पहचान पूर्वांचल के माफिया बृजेश सिंह के भतीजे के रूप में है। उन्होंने भाजपा के टिकट पर सैयदराजा से लगातार दूसरी बार जीत हासिल की है। इससे पहले 2012 में सकलडीहा से जीत हासिल की थी। वर्ष 2007 में बसपा के टिकट पर तत्कालीन धानापुर से जीत हासिल की थी। उधर, इस बार बाहुबली व माफिया मुख्तार अंसारी खुद चुनाव से दूर रहे। पर, उन्होंने बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा के टिकट पर मऊ सदर सीट से चुनाव लड़ाया। अब्बास पहली बार विधानसभा पहुंचे हैं।
रघुराज प्रताप सिंह लगातार आठवीं बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो गए। वह प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से वर्ष 1993 से लगातार विधायक हैं। इस बार वह सपा के गुलशन यादव को हराकर विधानसभा पहुंचे हैं। सिंह बतौर निर्दल उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे हैं और सपा इनके खिलाफ मैदान में किसी को नहीं उतारती थी। इस बार सपा ने उम्मीदवार उतारा, जिसने राजा भइया को कड़ी टक्कर दी। 
ज्ञानपुर सीट से हारे विजय मिश्रा
वर्ष 2002 से लगातार भदोही के ज्ञानपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे विजय मिश्रा इस बार चुनाव हार गए। वह जेल से चुनाव लड़ रहे थे। आंकड़ों में वह तीसरे नंबर पर रहे। इससे पहले वह सपा के टिकट पर वह वर्ष 2002, 2007 और 2012 में चुन कर विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2017 में वह निषाद पार्टी से लड़े और जीत गए। इस बार उन्हें न तो निषाद पार्टी ने टिकट दिया और न ही किसी प्रमुख दल ने टिकट दिया। भाजपा गठबंधन के विपुल दुबे निषाद पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़े और जीत गए।
धनंजय सिंह को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। वह पिछला चुनाव भी हार गए थे। वह चुनाव मैदान में उतरने से पहले काफी विवादों में भी रहे। इन पर हत्या के एक मामले में लखनऊ पुलिस ने 25 हजार का इनाम घोषित किया था। बाद मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी गई। जिसमें उनको क्लीनचिट मिल गई। वह चुनाव लड़े और हार गए। हलांकि चुनाव मैदान में आने के साथ ही जीत की स्क्रिप्ट तैयार किये थे लेकिन सपा की ताकत के आगे परास्त हो गये है। 
मोनू सिंह की गिनती अपने क्षेत्र के बाहुबलियों में होती है। वह सुल्तानपुर की इसौली से दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें दोनों बार हार का सामना करना पड़ा। वह पिछला चुनाव इसौली सीट से ही लड़े थे।
हत्या मामले में जेल जा चुके अमन मणि भी हारे
अमनमणि त्रिपाठी पूर्वांचल के दबंग नेता रहे अमर मणि त्रिपाठी के बेटे हैं। अमर मणि सजायाफ्ता हैं और जेल में बंद हैं। इसलिए वह चुनाव नहीं लड़ सकते। अमन मणि बतौर निर्दलीय उम्मीदवार नौतनवां से पिछला विधानसभा चुनाव जीते थे। मगर इस बार उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। वह भी हत्या के एक मामले में जेल जा चुके हैं। 

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