निष्पक्ष लोकतंत्र के महापर्व में जानें कैसे रहा धनतंत्र प्रभावी, जिम्मेदार रहे मौन


जौनपुर। लोकतंत्र के इस महापर्व विधान सभा चुनाव को शान्तिपूर्ण ढंग एवं निष्पक्ष रूप से सम्पन्न कराने के लिए निर्वाचन आयोग ने तमाम कड़े नियम बनाते हुए प्रत्येक जनपद में अपने प्रेक्षक को भेजा कि चुनाव निष्पक्ष रूप से सम्पन्न हो सके। उसी क्रम में जनपद जौनपुर की सभी नौ विधान सभाओ के लिए प्रेक्षक की नियुक्ति की गई। लेकिन जनपद में आयोग के प्रेक्षक गण केवल कागजी बाजीगरी का खेल करते हुए चुनाव सम्पन्न होने का दावा तो किया लेकिन सच यह है कि लोकतंत्र में पैसा तंत्र का खूब बोलबाला रहा और आयोग के नियम कानून सब कुछ ताख पर नजर आये है  
यहां बता दे कि जनपद की लगभग सभी विधान सभाओ में चुनाव लड़ने वाले तमाम राजनैतिक दलो के प्रत्याशियों द्वारा वोटो की खुली खरीद फरोख्त का खेल किया गया लेकिन एक भी प्रत्याशी के खिलाफ आयोग के प्रेक्षक का डन्डा नहीं चला इससे आयोग के प्रेक्षको की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। सूत्र की माने तो बसपा को चुनाव दंगल से बाहर होने के कारण भाजपा सपा कांग्रेस जद यू और निषाद पार्टी के प्रत्याशियों द्वारा दलित बस्तियों में बसपा के मूल मतदाताओ को प्रति परिवार एक हजार रूपए में खरीदा गया है इसके अलांवा गरीब से लेकर मध्यम वर्ग के मतदाताओ को खरीदने का खुला खेल 05 और 06 तारीख को किया गया है। 
वोटो के खरीद फरोख्त के इस खेल में बूथ स्तर के कार्यकर्ता अथवा ग्राम प्रधान तथा वीडीसी का सहारा प्रत्याशियों ने लिया और वोटो की खरीद फरोख्त किया। आयोग के प्रेक्षक गण यहा लोक निर्माण विभाग गेस्ट हाउस में बैठकर अपनी ड्यूटी को पूरा कर चलते बने। अगर यह कहा जाये कि प्रेक्षक गण चुनाव को पिकनिक के रूप में मनाते हुए समय काटे तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। हलांकि अब तो परिणाम की बेला आ गयी है। जन चर्चा है कि जो जितना वोट खरीदने में सफल रहा उसे उतना ही कामयाबी हासिल हो सकती है। 

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