मसाले न सिर्फ भोजन का जायका बदलते है बल्कि सेहत का खजाना भी है - डाॅ कोमलचंद



वाराणसी। मारीशस के जाने-माने आयुर्वेद चिकित्सक डा।कोमलचंद राधाकिशन ने कहा कि चुटकी भर मसाले न सिर्फ भोजन का जायका बदल देते हैं, बल्कि सेहत को सलामत रखने में मददगार भी साबित होते हैं। आमतौर पर ज्यादातर मसालों का इस्तेमाल संस्तुत मात्रा में करने पर वे पाचन तंत्र के लिए उद्दीपक का काम करते हैं। ये पेट की बीमारियों में गुणकारी हैं। कुछ मसाले एंटीसेप्टिक का काम भी करते हैं। इस धरती पर खाना पचाने में सहायक मसाले कुदरत की सबसे सशक्त नेमत है।
डा.कोमलचंद पहड़िया स्थित अशोका इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी एंड मैनेजमेंट और बायोटेक के स्टूडेंट्स को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आजकल मसालों को डाइटिंग (संतुलित आहार) से जोड़कर देखा जा रहा है। करीब ढाई हजार साल पहले चीन के मशहूर दार्शनिक कनफ्यूशियस ने कहा था कि हर बार भोजन के साथ अदरक लेने से पाचन में सुधार आता है। भूख बढ़ाने के लिए अदरक का सेवन बेहद लाभकारी है। संतुलित मात्रा में सेवन करने पर तेज़ लाल मिर्च शरीर का वजन घटा सकता है। अध्ययन में यह पाया गया है कि जैसे-जैसे शरीर का तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे पाचन की दर भी बढ़ती है। लाल मिर्च खाने वाले लोगों में मोटापा बढ़ाने वाला भोजन लेने की इच्छा कम हो जाती है। रिसर्च से प्रमाणित हो चुका है कि लोग हफ़्ते में एक दिन मिर्च खाते हैं, उनकी तुलना में हर रोज़ मिर्च का सेवन करने वालों की उम्र ज़्यादा होती है। यानी ऐसे लोगों में कैंसर, दिल की बीमारियां और सांस संबंधी बीमारियां काफ़ी कम होती हैं। लेकिन ज्यादा लाल मिर्च का इस्तेमाल सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकता है। हल्दी और मिर्च के बिना तो भारत में किसी पकवान की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मारीशस के आयुर्वेद चिकित्सक डा.राधकिशन ने कहा कि हर कोई कहता है कि भारतीय खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है, लेकिन यह सच नहीं है। मसालों की तासीर गर्म या ठंडी हो सकती है, लेकिन  इस्तेमाल पाचन तंत्र में संतुलन के लिए किया जाए तो सेहत में सुधार हो सकता है। चाय में नाइजेल सीड्स, सौंफ, इलायची और पिसा हुआ अदरक डालकर पीने से हैंगओवर भगाया जा सकता है। नींबू का रस पानी में मिलाकर पीने से वज़न कम हो जाता है। हल्दी वाला दूध पीने से किसी भी तरह के दर्द में आराम मिलता है। गला ख़राब हो तो अदरक वाली चाय इसका रामबाण इलाज है। उन्होंने कहा कि एशिया में सदियों से हल्दी का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन अब यह सुपरफ़ूड की श्रेणी में आ गई है। दुनिया भर के कॉफ़ी शॉप में 'गोल्डन लाते' के नाम से हल्दी वाली कॉफ़ी परोसी जाने लगी है। जलन, तनाव, दर्द और भी कई तरह की तकलीफ़ें दूर करने में हल्दी सहायक होती है। इसमें कैंसर जैसी घातक बीमारी से लड़ने की क्षमता होती है।
डा.कोमल ने पावर प्रजेंटेशन के जरिये मसालों के आयुर्वेदिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि जीरा, हींग, धनिया, सौफ, लौंग, इलायची, दालचीनी आदि मसालों के बारे में विस्तार से बताया। कहा कि जीरा एक बेहतरीन एंटीऑक्सिडेंट है। यह शरीर का सूजन कम करता है और मांसपेशियों को आराम पहुंचाता है। पेट की तमाम समस्याओं के अलावा श्वास नाल से जुड़ी दिक्कतों में हींग लाभकारी है। धनिया पाउडर पेट के संक्रमण, एसिडिटी और शरीर की जलन जैसी समस्याओं को दूर कर देता है। पाचन तंत्र को दुरुस्त करने के साथ ही शरीर की एलर्जी से बचाता है। उन्होंने यह भी कहा कि खुद को आधुनिक कहने वाले पश्चिम के तमाम देश पहले हमारे आयुर्वेद और घरेलू नुस्ख़ों को अंधविश्वास समझते थे, लेकिन अब हमारी पुरानी पद्धतियों पर उनका भरोसा हमसे ज्यादा बढ़ने लगा है।
अशोका इंस्टीट्यूट में फार्मेसी के प्रिंसिपल बृजेश सिंह ने डा.कोमल का स्वागत किया। इस मौके पर प्रो.सीपी मल्ल ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। अशोका इंस्टीट्यूट की ओर से मारीशस के आयुर्वेदाचार्य डा.कोमल चंद्र को शाल और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन  स्वप्निल पाण्डेय  ने किया। इस अवसर पर इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट्स और टीचर्स उपस्थित थे।

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