17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कर भाजपा ने चली बड़ी सियासी चाल
लखनऊ-दलितों के समान ही सामाजिक संरचना रखने वाली 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग दशकों से चल रही थी, समय-समय पर सरकारों ने इसके प्रयास भी किए लेकिन मौका देखते ही योगी सरकार ने इसे भी अपने पक्ष में भुना लिया। अब दूसरी दलित जातियों के साथ-साथ 17 अति पिछड़ी जातियां जिसमें कहार, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, कश्यप, बिंद, प्रजापति, धीवर, भर, राजभर, ढीमर, बाथम, तुरहा, मांझी, मछुआ और गोड़िया अब अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकती हैं। अगर देखा जाए तो अनुसूचित जाति के कोटे में 17 अति पिछड़ी जातियों को डालने का दांव मुलायम सिंह यादव ने चला था लेकिन उनका यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। माना जाता है कि इन 17 अति पिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी की लगभग 14 फीसदी है जो एक बहुत बड़ा वोट बैंक है और इसने पिछले चुनाव में बीजेपी को एकमुश्त वोट भी किया था। अति पिछड़े होने की वजह से यह न तो पिछड़ी जातियों का लाभ उठा पा रहे थे और न ही दलितों का। ऐसे में इन जातियों के अनुसूचित जाति में शामिल होने से इसका फायदा इन्हें होगा।
दरअसल, अनुसूचित जाति का दर्जा देने का आंदोलन पिछले कई सालों से चल रहा था। सिर्फ मुलायम सिंह यादव ने नहीं बल्कि मायावती ने भी अपने दौर में इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल कराने की कोशिश की थी और सबसे आखिरी कोशिश अखिलेश यादव ने की। उन्होंने इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का प्रस्ताव पास करा दिया था, लेकिन अदालत में जाकर अटक गया था और इस पर रोक लग गई थी।
इसे योगी सरकार का सौभाग्य माने या फिर सरकार की अंदरूनी कोशिशों का नतीजा। लेकिन इतना तो हो गया अदालत ने इस प्रस्ताव पर लगाई अपनी रोक हटा दी और इन 17 जातियों के अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट पाने का रास्ता साफ हो गया। अपने इस कदम से बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के एजेंडे को भी छीन लिया है।
योगी कैबिनेट में रहते हुए ओमप्रकाश राजभर लगातार अति पिछड़ों के आरक्षण की अलग से मांग करते रहे, लेकिन सरकार आरक्षण के भीतर आरक्षण का फार्मूला नहीं ला पाई लेकिन हाई कोर्ट के स्टे हटा लेने के बाद अब राजभर और भर सहित दूसरी दलितों के जैसी ही अति पिछड़ी जातियां अब अनुसूचित जाति के दायरे में आएंगी और आरक्षण का वह तमाम लाभ उन्हें भी मिल जाएगा। ऐसे में चाहे निषाद पार्टी हो या फिर सुहेलदेव राजभर की पार्टी इन दोनों पार्टियों के लिए इन मुद्दों पर सियासत करना आसान नहीं होगा।
योगी सरकार के लिए यह बड़ी राजनीतिक जीत इसलिए है क्योंकि अब योगी सरकार इसे अपने एजेंडे की तरह इस्तेमाल करेगी और इसका फायदा 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मिलेगा। एक तरफ बीजेपी को इन 17 अति पिछड़ी जातियों का सियासी फायदा तो मिलेगा लेकिन दलितों में मौजूद जातियों में इसके विरोध का खतरा भी है।
सियासी तौर पर जाटवों के अलावा दूसरी दलित जातियां बीजेपी के समर्थन में रहीं हैं। मसलन पासी, खटीक, सोनकर जैसी जातियां बीजेपी के साथ रहे हैं। अब 17 नई जातियों के अनुसूचित जाति के कोटे में आने से उनके लिए मौके कम हो सकते हैं और इसका विरोध बढ़ सकता है। यही वजह है कि बीजेपी ने कोर्ट के स्टे हटने के बाद चुपचाप इसके आदेश तो जारी कर दिए लेकिन खुलकर इसका क्रेडिट नहीं ले पा रही क्योंकि उसे दलित जातियों में भी विद्रोह का खतरा दिखाई दे रहा है।
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