आइए जानते है आज का युवा 2022 के आम चुनाव को लेकर क्या सोच रहा है, क्या होगी उनकी भूमिका



यूपी कू तमाम महानगरो एवं शैक्षिक हबो पर जिसमें खासकर प्रयागराज की गलियों में कभी शाम को गुजरिए। चाहे कर्नलगंज हो, बघाड़ा हो, सलोरी हो या फिर कोई और इलाका। हर तरफ मेला नजर आता है। जिंदगी संवारने की चाहत में चेहरों पर अनगिनत सवाल लिए युवाओं का मेला। दिनभर बंद कमरों में किताबों में खोए रहने वाले चेहरों का मेला। बाबूजी और अम्मा के सपनों में रंग भरने की चाहत लेकर शहर आए युवाओं का मेला। प्रयागराज ही क्यों? वाराणसी के लंका चले जाइए, कानपुर में काकादेव चले जाइए...हर जगह ऐसे चेहरे मिल जाएंगे। कहीं लाइनों में धक्के खाते, तो कहीं ट्रेनों में ठुंसे हुए तो कहीं ट्रेनों और बसों की छतों पर जगह तलाशते...। आयोगों की चौखट पर सपनों की तलाश में भटकते हुए। रोटियां गोल बने या न बने, कोई फर्क नहीं पड़ता। जल गईं या कच्ची रह गईं, इस पर भी कोई शिकवा-शिकायत नहीं। आज चोखा-रोटी मिलेगा या फिर...? फिक्र सिर्फ इतनी कि अबकी बार रंग चोखा होगा या नहीं। नहीं हुआ तो क्या...? बाबूजी को क्या जवाब देंगे? अम्मा को क्या बताएंगे? खुद को कैसे साबित करेंगे?

योगी सरकार का दावा है कि उसने साढ़े चार साल में 4.5 लाख से ज्यादा युवाओं को सरकारी नौकरियां दी हैं। इसमें प्राइमरी शिक्षक व प्रोफेसर से लेकर सिपाही, डॉक्टर, बाबू और डिप्टी कलेक्टर तक शामिल हैं। दावा यह भी है कि यह सपा और बसपा राज में दी गईं सरकारी नौकरियों से भी ज्यादा है। इस आंकड़े में 59 हजार पंचायत सहायक, 59 हजार सामुदायिक शौचालयों में नियुक्त महिलाकर्मी, 59 हजार बैंकिंग सखी और 15,427 विद्युत सखी शामिल नहीं हैं, जिन्हें घर के पास आय और रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराए गए हैं।
तीन करोड़ वे रोजगार भी इससे अलग हैं, जिसे लेकर दावा किया जा रहा है कि ये अवसर चार लाख करोड़ रुपये के निवेश से पैदा हुए हुए हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि यूपी की बेरोजगारी दर (नवंबर 2021) में राष्ट्रीय औसत 7 फीसदी से 2.2 फीसदी कम यानी 4.8 प्रतिशत पर सीमित रही है, जो कई अन्य राज्यों से भी कम हैं। युवाओं की उच्च शिक्षा के लिए 7 नए राज्य विश्वविद्यालय बनाने की पहल भी इन्हीं साढ़े चार साल में हुई है।
इन आंकड़ों से इतर कई कड़वी सच्चाइयां भी हैं, जो युवाओं का सुख-चैन छीने हुए हैं। आश्चर्य नहीं कि इसका असर चुनाव में दिखाई दे। मसलन टीईटी समेत कई भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक होने की घटनाएं पारदर्शी भर्ती व्यवस्था के दावों पर सवाल उठाती हैं। कोविड महामारी में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां चली गईं जो स्थिति सामान्य होने के बाद भी नहीं मिल पाईं। जिन्हें मिली भी, वह उस स्तर की नहीं है, जिससे उन्हें बेदखल होना पड़ा। वे रोजी-रोटी के लिए भटकने को मजबूर हो गए। बच्चों की अच्छे स्कूलों की पढ़ाई छूट गई।

कोरोना काल में नौकरी गई बच्चों की पढ़ाई भी छूटी
नोएडा के बृजेश मिश्रा बताते हैं कि वे एक ब्रांडेड कपड़े की फैक्टरी में 22 हजार रुपये की नौकरी करते थे। कोविड की आंधी में मालिक ने शटर गिरा दिया तो सड़क पर आ गए। प्रतिबंध हटा, दुकान चालू भी हुई, लेकिन मालिक ने नौकरी नहीं दी। लैपटॉप या एंड्रॉयड फोन न होने से ऑनलाइन क्लास नहीं करा पाया और दोनों बच्चों की पढ़ाई छूट गई। किसी तरह एक बैटरी रिक्शा कर्ज पर लिया। दूसरी लहर में वह भी खड़ा हो गया। किस्त समय से अदा नहीं हो पाई और ब्याज भी बढ़ गया। इस तरह की मुसीबत न जाने कितने अब भी भुगत रहे हैं।

योगी सरकार में युवाओं को नौकरी

4.5 लाख को सरकारी नौकरी

1,43,000 भर्तियां पुलिस विभाग में

1,24,340 सहायक शिक्षकों की नियुक्ति

6 हजार माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति

59 हजार पंचायत सहायक

3.5 लाख को संविदा नियुक्ति

2 करोड़ से ज्यादा युवाओं को एमएसएमई के जरिये रोजगार, 5 लाख को स्टार्टअप के जरिये

महिलाओं को 1 लाख से अधिक को सरकारी नौकरी, 59 हजार सामुदायिक शौचालयों में नियुक्त महिलाकर्मी

59 हजार बैंकिंग सखी

15,427 विद्युत सखी

युवाओं को आशंका... सरकारी नौकरियां घटाने की साजिश तो नहीं

युवाओं को सबसे बड़ी आशंका सरकारी नौकरियों को चरणबद्ध तरीके से सीमित किए जाने की सता रही है। आउटसोर्सिंग से जिस तरह भर्तियां तेजी से बढ़ रही हैं, युवाओं की चिंता भी बढ़ रही है। संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री सच्चितानंद मिश्र कहते हैं कि आउटसोर्सिंग में भर्ती से लेकर, नवीनीकरण तक कर्मियों का शोषण होता है। समय से मानदेय नहीं मिलता है और कई-कई महीने बाद आधा-अधूरा भुगतान किया जाता है। हजारों कर्मी नवीनीकरण के समय निकाले जा चुके हैं। जब भी कोई समस्या लेकर सरकार के पास जाता है, वह एक नया शासनादेश जारी कर देती है। अब तक चार-चार शासनादेश हो गए, लेकिन शोषण से कोई राहत नहीं मिली।मिश्र कहते हैं, वास्तव में आउटसोर्सिंग एक धंधा है, जिसे सपा सरकार ने शुरू किया। मौजूदा सरकार में खूब फला-फूला और इसका कारोबार 800 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसमें आउटसोर्सिंग एजेंसी से लेकर सरकारी सिस्टम तक पूरी तरह मिले हुए हैं। समान पद के लिए अलग-अलग मानदेय है। सेवा प्रदाता की व्यवस्था समाप्त कर विभाग द्वारा रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। सेवा प्रदाता कर्मचारियों के वेतन से 18 प्रतिशत जीएसटी व 5 प्रतिशत सर्विस चार्ज काटता है। विभाग से भर्ती पर यह पैसा कर्मचारी पा सकेंगे।

सरकार विरोधी मानसिकता से काम कर रहे कई अफसर
आउटसोर्सिंग के जरिए सरकार को सेवा दे रहे विजय शंकर द्विवेदी कहते हैं कि कुछ अफसर सरकार विरोधी मानसिकता से काम कर रहे हैं। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि नियमित नौकरी को भी पांच वर्ष तक संविदा पर रखने की कोशिश की गई। इससे भी मन नहीं भरा तो चयन के बाद की यह संविदा अवधि सेवा में न जोड़ने का प्रस्ताव शामिल कर लिया। यही नहीं, चयनित लोगों की एक सीमा तक छंटनी का प्रावधान भी शामिल कर लिया। शुक्र यह रहा कि इस प्रस्ताव का समय से खुलासा हो गया और युवाओं के जबरदस्त विरोध से अफसरों को पैर पीछे खींचने पर मजबूर होना पड़ा। यह कोशिश फिर कब शुरू हो जाए, क्या पता? इस सिस्टम से युवाओं का भरोसा उठ चुका है।
दावों के विपरीत  है हकीकत...

पेपर लीक और परीक्षाओं में गलत सवालों से हुई किरकिरी

रिकॉर्ड सरकारी नौकरियों के दावों के इतर एक परेशान करने वाली तस्वीर यह भी है कि भर्ती बोर्डों व चयन आयोगों की मनमानी पर पूरी तरह अंकुश यह सरकार भी नहीं लगा पाई।

प्रतियोगी अभ्यर्थी ब्रजभूषण पांडेय कहते हैं कि परीक्षाओं में बड़ी संख्या में गलत सवाल, एक ही सवाल के हिंदी व अंग्रेजी में भिन्न-भिन्न अर्थ वाले विकल्पों ने अभ्यर्थियों को कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने को मजबूर कर दिया। बार-बार पेपर लीक होते रहे। 20 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों वाली टीईटी से उम्मीदें परवान चढ़ी थीं, लेकिन पेपर लीक ने उस पर भी पानी फेर दिया।

एक अन्य प्रतियोगी छात्र अभिषेक सिंह कहते हैं कि लोकसेवा आयोग में परीक्षा नियंत्रक की गिरफ्तारी से लेकर टीईटी में परीक्षा नियामक प्राधिकारी तक सरकार केवल दिखाने की ही कार्रवाई करती नजर आई और अभ्यर्थी ठगा महसूस करते रहे।

सीबीआई की जांच भी ढाक  के तीन पात

यूपी लोकसेवा आयोग की बेतुकी कार्यप्रणाली से युवा परेशान रहे। सरकार ने वादे के बावजूद सपा राज की भर्तियों में हुए फर्जीवाड़े के दोषियों पर कार्रवाई में रुचि  नहीं दिखाई।

सीबीआई जांच भी ढाक के तीन पात ही नजर आ रही है। वहीं, माध्यमिक व उच्चतर शिक्षा सेवा चयन बोर्ड/आयोग केवल पिछली सरकार की शुरू की भर्तियां निपटाने तक सीमित रहीं।

अधीनस्थ सेवा चयन आयोग तो पिछले दो वर्ष में एक प्रारंभिक अर्हता परीक्षा (पीईटी) को छोड़ कोई नई भर्ती परीक्षा नहीं करा   पाया है। सारे दावे बेमतलब साबित हुए हैं।
सरकार बनाने में युवाओं की भूमिका अहम

26.56 फीसदी वोटर 18 से 29 आयु वर्ग के थे 2019 के लोकसभा चुनाव में।  पंचायत चुनाव के समय 46.19% वोटर 18 से 35 आयु वर्ग के थे राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार।

इनमें 78.37 लाख तो 18 से 21 वर्ष वाले थे। ये आंकड़ा गांवों का है। और बढ़ेगी संख्या। 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए पुनरीक्षित वोटर लिस्ट तैयार हो रही है। इसमें बड़ी संख्या में नए युवा वोटर जुड़ रहे हैं।

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