पिछड़े, दलित समाज के सुधारक ज्योतिराव फूले की पुण्यतिथि पर विशेष



कपिल देव मौर्य

ज्योतिराव गोविंदराव फुले की आज पुण्यतिथि है। वे एक महान समाजसुधारक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले और ज्योतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। उन्‍होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए बहुत काम किया, इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। महिलाओं को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें 1883 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘स्त्री शिक्षण के आद्यजनक’ कहा गया था।


जिस समय में दलितों और महिलाओं की सामाजिक स्थिति शोचनीय थी और उनको बहुत निचला दर्जा प्राप्त था उस समय में ज्योतिराव फुले ने दलितों और महिलाओं के अधिकारों की अलख जगाई। उन्होंने सितम्बर 1873 में महाराष्ट्र में ‘सत्य शोधक समाज’ नामक संस्था का गठन किया। जिसके जरिये महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए क्रांतिकारी काम किये। ज्योतिराव समाज के सभी वर्गों को शिक्षा प्रदान करने के प्रबल समर्थक होने के अलावा भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।

ज्योतिराव फुले का मूल उद्देश्य स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन करना था। वे फुले समाज को कुप्रथा और अंधविश्वास के जाल से मुक्त करना चाहते थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने और स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया। स्त्रियों की तत्कालीन दयनीय स्थिति से फुले बहुत व्याकुल और दुखी थे इसीलिए उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि वे समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाकर ही रहेंगे।


फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। उन्होंने 1848 में कन्याओं के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पुणे में बनाई। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री फुले को इस योग्य बना दिया। सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला अध्यापिका थीं। उच्च वर्ग के लोगों ने आरम्भ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।

जोतिराव फुले की समाजसेवा देखकर 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी गयी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे। महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने उस समय ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया था।

अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं जिनमें ‘गुलामगिरी’, ‘तृतीय रत्न’, ‘छत्रपति शिवाजी’, ‘किसान का कोड़ा’, ‘अछूतों की कैफियत’ प्रमुख हैं। इन पुस्तकों के जरिये ज्योतिबा ने धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने का प्रयास किया है।


महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में पुणे में हुआ था। एक वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का निधन हो गया। इनका लालन पालन एक बाई ने किया। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग ‘फुले’ के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया लेकिन गरीबी के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं। दलित व स्‍त्रीशिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति पत्‍नी ने मिलकर काम किया। 28 नवम्बर 1890 को इस महान समाजसेवी का देहांत हो गया।

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