मकर-संक्रान्ति पर्व एवं उसका महत्व - डॉ. मनोज मिश्र



 भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रद्धा, आस्था, हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ मनाया जाता है। पर्व एवं त्योहार प्रत्येक देश की संस्कृति तथा सभ्यता को उजागर करते हैं। यहां पर पर्व, त्योहार और उत्सव पृथक-पृथक प्रदेशों में अलग-अलग ढंग से मनाये जाते हैं।
  सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर-संक्रान्ति’ कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है। इस तरह मकर-संक्रान्ति एक प्रकार से देवताओं का प्रभातकाल है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। कहते हैं कि इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन घृत और कम्बल के दान का भी विशेष महत्व है। इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है।-
माघे मासि महादेव यो दद्याद् घृतकम्बलम्।
स भुक्त्वा सकलान् भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।
  मकर-संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान तथा गंगा तट पर दान की विशेष महिमा है। तीर्थराज प्रयाग एवं गंगा सागर का मकर-संक्रान्ति का पर्व स्नान तो प्रसिद्ध ही है। उत्तर प्रदेश में इस व्रत को ‘खिचड़ी’ कहते हैं। इसलिए इस दिन खिचड़ी खाने तथा खिचड़ी-तिल दान देने का विशेष महत्व हैं। महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियां पहली संक्रान्ति पर तेल, कपास, नमक आदि वस्तुएं सौभाग्यवती स्त्रियों को प्रदान करती हैं। बंगाल में इस दिन स्नान कर तिल दान करने का विशेष प्रचलन है। दक्षिण भारत में से ‘पोंगल’ कहते हैं। असम में आज के दिन बिहू का त्योहार मनाया जाता है। राजस्थान की प्रथा के अनुसार इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां तिलके लड्डू, घेवर तथा मोतीचूर के लड्डू आदि पर रूपया रखकर वायन के रूप में अपनी सास को प्रणाम कर देती हैं तथा प्रायः किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान करती है। इस प्रकार देश के विभिन्न भागों मेें मकर-संक्रान्ति पर्व पर विविध परम्पराएं प्रचलित हैं।
  मकर-संक्रान्ति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। इस सम्बन्ध में संत तुलसी दास जी ने श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
  ऐसा कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर-संक्रान्ति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। अतएव वहां मकर-संक्रान्ति पर्व के दिन स्नान करना अनन्त पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है।
  मकर-संक्रान्ति पर्व प्रायः प्रतिवर्ष 14 जनवरी को पड़ता है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे ‘संक्रमण’ या ‘संक्रान्ति’ कहा जाता है।
  मकर-संक्रान्ति पर्व में स्नान दान का विशेष महत्व है। हमारे धर्मग्रन्थों में स्नान को पुण्यजनक के साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक माना गया है। मकर-संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, ऋतु परिवर्तन हो जाता है, इसलिए उस समय स्नान करना सुखदायी लगता है।
उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारे (तट पर) बसे गांवों-नगरों में मेलों का आयोजन होता है। इस दिन पतंगबाजी पर बड़ी-बड़ी स्पर्धाएं होती हैं। बच्चे-युवा सभी खूब जमकर पतंग उड़ाते हैं। मकर संक्रान्ति के दिन पतंग उड़ाने को लेकर लोग साल भर तैयारी करते हैं।
भारत में सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में मकर-संक्रान्ति पर्व पर ‘गंगा सागर’ में लगता है। गंगा सागर के मेले पीछे पौराणिक कथा है कि मकर-संक्रान्ति को गंगा जी स्वर्ग से उतरकर भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गयीं। गंगा जी के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इसी घटना की स्मृति में गंगा सागर नाम से तीर्थ विख्यात हुआ और प्रतिवर्ष 14 जनवरी को गंगासागर में मेले का आयोजन होता है।
मकर-संक्रान्ति पर्व पर प्रयाग के संगम स्थल पर प्रतिवर्ष लगभग एक मास तक माघ मेला लगता है जहां भक्तगत कल्पवास भी करते हैं तथा बारह वर्ष में कुम्भ मेला लगता है। यह भी लगभग एक मास तक रहता है। इसी प्रकार छः वर्ष में अर्धकुम्भ मेला लगता है।
विभिन्न परम्पराओं और रीति-रिवाजों के अनुरूप महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर-संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल-तिल बढ़ती है, इसलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक-दूसरे को वितरित करते हुए शुभकामनाएं देकर यह त्योहार मनाया जाता है। महाराष्ट्र और गुजरात में मकर-संक्रान्ति पर्व पर अनेक खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है।
पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर में ‘लोहड़ी’ के नाम से मकर-संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचलित लोककथा है कि मकर-संक्रान्ति के दिन कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिये लोहिता नाम की एक राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के फलस्वरूप लोहिड़ी का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धीसमाज भी मकर-संक्रान्ति के एक दिन पूर्व इसे ‘लाल लोही’ के रूप में मनाता है।
  तमिलनाडु में मकर-संक्रान्ति को ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन तिल, चावल, दाल की खिचड़ी बनायी जाती है। नयी फसल का चावल, दाल, तिल के भाज्य पदार्थ से पूजा करके कृषि देवता के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। तमिल पंचांग का नया वर्ष पोंगल से शुरू होता है।
  भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर-संक्रान्ति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर-संक्रान्ति से दिन बढ़ने लगता है और रात्रि की अवधि कम होती जाती है। स्पष्ट है कि दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा और रात्रि छोटी होने से अंधकार की अवधि कम होगी। यह सभी जानते हैं कि सूर्य ऊर्जा का अजस्र स्रोत है। इसके अधिक देर चमकने से प्राणि जगत में चेतनता और उसकी कार्यशक्ति में वृद्धि हो जाती है। इसीलिए हमारी संस्कृति में मकर-संक्रान्ति पर्व मनाने का विशेष महत्व है।

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