सरकार ने बेंच दी एक और पीएसयू कम्पनी, भारी उद्योग मंत्रालय ने करायी बीपीसीएल की निलामी


पांच दशक तक देश विदेश में संगम नगरी का नाम रौशन करने वाली पब्लिक सेक्टर की कंपनी भारत पंप्स एंड कंप्रेशर लिमिटेड (बीपीसीएल) आखिरकार बिक ही गई। शुक्रवार को कंपनी की जमीन को छोड़कर मशीनरी और कबाड़ की आनलाइन नीलामी हुई थी। नीलामी में देश भर के कई व्यापारियों ने बोली लगाई। सबसे अधिक बाेली किसने और कितने की लगाई, इसे भारी उद्योग मंत्रालय ने अब तक उजागर नहीं किया है। लेकिन अफसरों ने बताया कि जो बोली आई थी, उससे मंत्रालय संतुष्ठ है और जल्द ही यहां से मशीनरी और कबाड़ ले जाने का आदेश जारी कर दिया जाएगा। उसके बाद खाली जमीन राज्य सरकार को लौटा दी जाएगी।
करीब छह दशक पहले यमुनापार में औद्याेगिक क्षेत्र बसाया गया। फिर यहां पर सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियां लगवाई गई। 1970 में मिर्जापुर रोड पर प्रदेश सरकार की 231 एकड़ जमीन पर बीपीसीएल की स्थापना की गई। यहां पर हजारों लोगाें को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला। इसके अंदर दो प्लांट लगाए गए, गैस सिलेंडर और पंप एंड कंप्रेशर प्लांट। यहां पर रसोई सिलेंडर बनते थे और देशभर में सप्लाई होते थे। बाद में निजी क्षेत्र सिलेंडर का निर्माण शुरू हुआ और यहां से सप्लाई बंद हो गई। फिर आक्सीजन सिलेंडर बनने लगे। बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और राजनीतिक दखल बढ़ा तो उसकी भी सप्लाई बंद हो गई। यहां से पंप और कंप्रेशर विश्व स्तर के बनते थे। यहां से लवन रिफाइनरी तेहरान इरान को पंप जाते थे। इसके अलावा यहां से बनाए गए पंप आइओसी, एचपीसीएल, बीपीसीएल, ओएनजीसी सहित सभी रिफाइनरी में जाते थे। यहां से तैयार पंप और कंप्रेशन इतने अच्छे होते थे कि भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर समेत सभी परमाणु संयंत्रों और फर्टीलाइजर व केमिकल फैक्ट्रियों में जाते थे। यहां पर फ्रांस, इटली, जर्मनी, अमेरिका, रोमानिया और जापान की मशीनें हैं और उनसे तकनीक साझा करके मशीनरी का निर्माण होता था।

देश की मिनी रत्न इस कंपनी की हालत बढ़ते राजनीतिक दखल और कर्मचारी यूनियन के चलते खराब हो गई। दिसंबर 2020 में इसे भारत सरकार ने बंद करने की घोषणा कर दी। उसके बाद पिछले साल यहां के सभी अफसरों और कर्मियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। फिर इसे बेचने का क्रम शुरू हो गया। इस कंपनी की जमीन राज्य सरकार की है। इसलिए जमीन को छोड़कर यहां पर लगी करोड़ों की देशी विदेशी मशीनों और कबाड़ का शुक्रवार को आनलाइन सौदा कर दिया गया। मेटल स्क्रैप ट्रेड कारपोरेशन (एमएसटीसी) के जरिए आनलाइन बोली लगाई गई। पिछले महीने दो बार आनलाइनइ नीलामी हुई लेकिन बेस प्राइज 58 और 54 कराेड़ होने के कारण किसी ने बोली नहीं लगाई। शुक्रवार को इसका आधार मूल्य (बेस प्राइज) 44.85 करोड़ रुपये रखा गया तो कई खरीदारों ने बढ़ चढ़कर बोली लगा दी। इस बोेली से भारी उद्योग मंत्रालय के अफसर संतुष्ठ हैं। लेकिन सबसे अधिक बोली किसने लगाई, इसे उजागर नहीं किया गया है। जिसने सबसे अधिक बोली लगाई है, जल्द ही उसे यहां से मशीन और कबाड़ ले जाने का आर्डर मिल जाएगा। उसके जमीन राज्य सरकार काे सौंप दी जाएगी।


इसको बचाने को प्रयास नाकाम रहा। भारत सरकार का रुख इसे बचाने में नहीं बंद करने में ही था। कोरोना काल में जब यहां पर आक्सीजन सिलेंडर बनाकर तैयार कर दिया गया था, तब भारत सरकार ने तैयार माल सप्लाई का आदेश नहीं था और बना बनाया माल यहां पर पड़ा है। अफसरों ने बताया कि इसे बचाना होता ताे शुक्रवार काे बोली रोक दी जाती लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

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