कालाजार संक्रमितों की पहचान करना अब होगा आसान, बीएचयू ने खोजा तरीका


बिना लक्षण वाले कालाजार संक्रमितों की पहचान अब आसानी से की जा सकेगी। इसके लिए आईएमएस बीएचयू के वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका ढूंढ निकाला है। मेडिसिन विभाग के विशिष्ट प्रोफेसर प्रो. श्यामसुंदर, डॉ.राजीव कुमार के निर्देशन में हुए एक अध्ययन में एम्फिरेगुलिन नामक एक ऐसे प्रोटीन का पता लगाया गया है, जिसका उपयोग बिना लक्षण वाले व्यक्तियों की पहचान करने में एक बायोमार्कर के रूप में किया जा सकता है।
पोलियो, क्षय रोग की तरह ही अब कालाजार उन्मूलन को लेकर सरकार की ओर से अलग-अलग कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसमें समय से बीमारी की पहचान के साथ ही उसके उपचार आदि को लेकर जागरूक भी किया जा रहा है। इस अध्ययन में प्रो. श्याम सुंदर और डॉ. राजीव कुमार के निर्देशन में सीनियर रिसर्च फेलो सिद्धार्थ शंकर सिंह ने अहम भूमिका निभाई।
शोध दल ने कालाजार के प्रभाव के क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के तीन समूहों (बिना लक्षण वाले कालाजार व्यक्तियों, कालाजार के मरीजों और स्वस्थ व्यक्तियों) से एकत्र किए गए रक्त के नमूनों पर ट्रांसक्रिप्टोमिक अध्ययन किया और एम्फिरेगुलिन नामक एक बायोमार्कर की पहचान की, जो बिना लक्षण वाले व्यक्तियों की पहचान में मदद करेगा।
प्रो.श्याम सुंदर ने बताया कि एम्फायरगुलिन अणु न केवल सूजन और ऊतक क्षति को रोकता है, बल्कि उन्हें सक्रिय रोग वाले व्यक्तियों से भी अलग कर सकता है। हाल ही में यह शोध कार्य शोध पत्रिका क्लीनिकल एंड ट्रांसलेशनल इम्यूनोलॉजी के नये अंक में प्रकाशित हो चुका है। 
प्रो. श्यामसुंदर ने बताया कि कालाजार के लक्षणों में अनियमित बुखार, वजन कम होना, प्लीहा और यकृत का बढ़ना और एनीमिया शामिल हैं। इसके ज्यादातर मामले ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका और भारत में होते हैं। दुनिया भर में हर साल करीब 50 से 90 हजार नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से केवल 25 से 45 प्रतिशत के बारे में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को जानकारी पहुंच पाती है।
ऐसे व्यक्ति जिनमें कालाजार का कोई लक्षण तो नहीं दिखता है लेकिन परजीवी को अपने शरीर में संयोजित किए रहते है, जो कालाजार का संक्रमण बढ़ाने में मददगार होता है। यह अध्ययन  कालाजार के प्रभाव वाले क्षेत्र में रोग का बेहतर प्रबंधन करने में मदद करेगा।

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