सवाल:बसपा भाजपा सपा से रिस्ते खटास करने वाले राजभर अब किससे जोड़ेंगे रिस्ता ?



इतिहास बता रहा है किसी से भी नहीं चला राजभर का राजनैतिक सम्बन्ध

जौनपुर। प्रदेश की राजनीति में उथल पुथल मचाने वाले सुभासपा नेता ओम प्रकाश राजभर के राजनैतिक जीवन के इतिहास पर नजर डाली जाये तो आज तक किसी भी दल के ओम प्रकाश राजभर टिकाऊ गठबंधन नहीं कर सके है।इसके उदाहरण कई है जो इनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे है। ये हर किसी राजनैतिक पर सवाल खड़ा करते हुए खुद को समाज का बड़ा शुभ चिन्तक होने का दावा करते है। इनके इस दावे के सच की पोल सुभासपा से अलग होकर राजनैतिक दल बनाने वाले राजभर के साथी ने खोल कर रख दिया है।


ओम प्रकाश राजभर के राजनैतिक सफर की बात करें तो इन्होंने स्व काशीराम के साथ अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत 1981 में किया उनके सिद्धांत और आदर्श को मान कर बसपा के साथ जुड़े रहे लेकिन 2001 में बसपा की वर्तमान अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री मायावती से मतभेद किया और विवाद इतना बढ़ गया कि बसपा को अलविदा कह दिये। इसके बाद अपना दल में गये वहां भी नहीं टिक सके स्व सोनेलाल पटेल से विवाद कर चलते बने। फिर अपनी पार्टी बना ली और पिछड़ा दलित वंचित की सियासत शुरू कर दिये चुनाव लड़ते रहे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी।
वर्ष 2017 में आम चुनाव के दौरान भाजपा से गठबंधन किये और कुछ विधायक सुभासपा के पहली बार जीते और मंत्रीमंडल में राजभर कैबिनेट मंत्री बन गये कुछ ही समय बीता था कि  मंत्रिमंडल में रहते हुए भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पानी पी पी कर आलोचना शुरू कर दिये। 2019 तक इनको बर्दाश्त करने के बाद योगी आदित्यनाथ ने राजभर को मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया इस तरह यहां भी गठबंधन और दोस्ती  2019 में खत्म हो गयी। फिर अकेले पड़ गये। अब बसपा और भाजपा से दूर होने के बाद राजभर ने 2022 में विधान सभा आम चुनाव के ठीक पहले सपा से गठबंधन किये और डेढ़ दर्जन सीटो पर चुनाव लड़कर 06 विधायक वाला दल बन गये। चुनाव बीतने के बाद से ही सपा और राजभर के बीच खटास शुरू हो गयी और 05 माह के भीतर ही दोंनो दलो के बीच तलाक हो गया। अब आरोप लगाते फिर रहे है कि सपा नेतृत्व के चलते गठबंधन टूटा है।लेकिन इस गठबंधन को खत्म होने के पीछे सबसे बड़ा कारण राजभर का परिवार मोह माना जा रहा है चाहते थे पुत्र एम एल सी बन जाये जो संभव नहीं हो सका फिर राजनैतिक जंग शुरू हो गयी। परिणाम यह हुआ कि दोनो दलो के बीच दरार बढ़ी और रिस्ता टूट गया।
इस तरह अभी तक ओम प्रकाश राजभर का बसपा भाजपा और सपा से विवाद के बाद नाता टूट चुका है। हलांकि अभी चन्द रोज पहले राजभर ने बसपा से गठबंधन की बात जैसे करना शुरू किया। बसपा नेता मायावती ने दो टुक कह दिया धोखेबाजो की जरूरत बसपा को नहीं है।भाजपा में लौटने की चर्चा पर विराम लगते ही अब जनता से गठबंधन करने की यलगार राजभर की ओर से शुरू हो गई है।हलांकि अभी कांग्रेस एक ऐसी पार्टी शेष है जहां अभी तक राजभर जी नहीं गये है।आने वाले समय में किस दल से नाता बनायेगे अथवा एकला चलने को मजबूर होगे यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है। ओम प्रकाश राजभर के सुभासपा गठन के संस्थापक साथी शशि प्रताप सिंह ने विगत 11 जुलाई 22 को इनसे अलग होते हुए नयी पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी बनाया और खुला आरोप लगाया कि राजभर से किसी समाज का कोई लेना देना नहीं बल्कि अपने परिवार के हित की राजनीति करते है। सब कुछ इनको और इनके परिवार को मिलना चाहिए। अब इतना तो तय है और अब तक कि उपरोक्त घटनाये साक्षी है किसी के भी साथ ओमप्रकाश राजभर का लम्बा गठबंधन नहीं चल सकेगा ऐसा अनुमान लगया जा रहा है।

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