सपा में नव नियुक्त अध्यक्ष को लेकर उठने लगी विरोधात्मक आवाज आखिर जिम्मेदार कौन ? क्या 2007 का इतिहास दोहरायेगी सपा ?


जौनपुर। समाजवादी पार्टी के नेतृत्व द्वारा जिले का नया अध्याय नियुक्त करने के साथ ही पार्टी के अन्दर खाने में सिरमुड़ाते ही ओले पड़ने वाला मुहावरा नजर आने लगा है। नव नियुक्त जिलाध्यक्ष डाॅ अवध नाथ पाल द्वारा पार्टी के कार्यकर्ताओ की उपेक्षा से पार्टी के अन्दर गुटीय राजनीति की बू आने लगी है। ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि नव नियुक्त अध्यक्ष के रहते सपा जनपद जौनपुर में 2024 की नैया कैसे पार कर सकेगी। 
यहां बता दें कि जिलाध्यक्ष बनाये जाने के बाद डाॅ अवध नाथ पाल 1अप्रैल 23 शनिवार को सड़क मार्ग से तामझाम के साथ जनपद की धरती पर अवतरित हुए जनपद की सीमा से लगायत मुख्यालय तक खूब स्वागत करवाया। इसी दिन की घटना है मछलीशहर (सु) की विधायक रागिनी सोनकर ने विधान सभा क्षेत्र के मुस्लिम मतदाताओ के सम्मान में रोजा अफतार का कार्यक्रम रखा था और नव नियुक्त अध्यक्ष डाॅ पाल को भी जिलाध्यक्ष होने के नाते आमंत्रित किया था। जिलाध्यक्ष ने समय तो दे दिया लेकिन मछलीशहर जाना उचित नहीं समझा और नहीं गये।इससे मछलीशहर शहर के मुस्लिम सपाईयों के अन्दर नाराजगी पार्टी नेतृत्व के प्रति नजर आयी है। वहीं तेज तर्रार विधायक रागिनी भी अपनी उपेक्षा महसूस कर रही है। सूत्र की माने तो नव नियुक्त जिलाध्यक्ष के इस हरकत के पीछे एक अहंकारी जन प्रतिनिधि की भूमिका मानी जा रही है। जो अगड़ा पिछड़ा दलित अति पीछड़ा की राजनीति करते हुए पार्टी जनों और समाज दोंनो स्तर पर विभेद पैदा करने की सियासत का माहिर माना जाता है।
जिलाध्यक्ष के आगमन के प्रथम दिन एक दूसरी घटना का जिक्र करना जरूरी है जो नव नियुक्त जिलाध्यक्ष की सोच और मानसिकता का खुलासा करती है। किसी भी संगठन अथवा राजनैतिक दल का कार्यालय जिलाध्यक्ष के लिए बड़ा महत्वपूर्ण होता है। सपा के नव नियुक्त जिलाध्यक्ष डाॅ पाल पार्टी कार्यालय पर गये जरूर लेकिन जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठना मुनासिब नहीं समझा चन्द मिनट खड़े हुए हैलो बाय बाय करते अपने लिए चयनित स्वागत स्थल को रवाना हो गए। जिम्मेदार और पार्टी के पुराने कार्यकर्ता खड़े रहे। डाॅ पाल उनसे मिलना जरूरी नहीं समझा, जबकि किसी भी संगठन की रीढ़ कार्यकर्ता ही होता है। अपनी उपेक्षाओ से सपा के पुराने कार्यकर्ताओ में नाराजगी आनी स्वभाविक भी है। इसका असर आने वाले समय में पार्टी नेतृत्व को भुगतना पड़ सकता है।
पार्टी के अन्दर नव नियुक्त जिलाध्यक्ष के कृत्य से नाराज चल रहे कार्यकर्ता ने बताया कि डॉ पाल के गाड फादर इस समय जिले के दो बड़े ऐसे सपाई नेता है। जो पार्टी हित कभी नहीं चाहे अपने हित का गेम हमेसा खेलते रहे है। जो नव नियुक्त जिलाध्यक्ष के जरिए फिर पार्टी को घुन की तरह चाटने का अभियान चला सकते है।उनकी इस मुहिम में नेतृत्व ने ऐसे व्यक्ति के हाथ कमान दी है जो उपरोक्त के खेल का हिस्सा बनेगा।
यहां एक बात की चर्चा और भी जरूरी है कि डाॅ पाल इसके पहले 2007 में पहले कार्यवाहक अध्यक्ष बने फिर फुल फ्लेस जिलाध्यक्ष बनाये गये। इनके इस कार्यकाल पर नजर डाली जाये तो 2007 में डाॅ अवध नाथ पाल जब अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाले तो जौनपुर जनपद से सपा का लगभग सफाया हो गया था और यूपी में बसपा की सरकार बन गई थी। विधान सभा के चुनाव में महज दो विधायक नहीं जीत सके थे। वह अपने खुद के दम पर पार्टी से सहयोग नहीं मिला था ऐसा पार्टी जन बता रहे है। 2009 लोक सभा के चुनाव में जिले की अति महत्वपूर्ण सीट जौनपुर संसदीय क्षेत्र से सपा को पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके बाद डाॅ पाल को जिलाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। इनके अध्यक्ष रहते पार्टी को क्यों हार का सामना करना पड़ा यह पार्टी जन और जनपद जानता है।संगठन कमजोर हो गया था संघर्ष बन्द हो गया था आदि कई कारण थे। इस तरह कहा जाये कि डाॅ पाल के पहले जिलाध्यक्षी कार्यालय में पार्टी को लाभ के बजाय घाटा हुआ था।
अब एक बार फिर पार्टी नेतृत्व ने चन्द जनपद स्तरीय नेताओ की बात मान कर डाॅ पाल पर दांव लगाया और जिलाध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। पिछली बार की पुनरावृत्ति होगी अथवा कुछ नया संभव होगा। हलांकि नियुक्ति के बाद से ही राय देहन्दाओ की जो फेहरिस्त नजर आयी है वह संकेत करती है कि 2024 में जनपद जौनपुर के अन्दर सपा की राह आसान नहीं होगी। कार्यकर्ता अपनी उपेक्षाओ से नाराज पार्टी में रहते हुए शान्त नजर आ सकते है। हलांकि एक बड़ा सवाल यह भी है कि संगठन को जिले में शक्ति कौन प्रदान करेगा। नव नियुक्त अध्यक्ष की पिछली कार्यशैली भी संकेत दे रही है कि संगठन कितना संघर्ष शील और जुझारू रह सकेगा।इस तरह के तमाम सवालात सपा के लेकर जौनपुर में खड़े हो रहे है क्या नेतृत्व इसका कोई रास्ता निकालेगा अथवा जौनपुर के सपा जन को राम भरोसे छोड़ देगा।

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