आईजीआरएस पर की गयी शिकायतो के निस्तारण में जानें क्या है कागजी बाजीगरी का खेल


जौनपुर। समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली यानी आईजीआरएस पोर्टल आमजन की शिकायतों का सबसे बड़ा प्लेटफार्म है। जनता को विश्वास है कि मुख्यमंत्री के इस पोर्टल पर स्वयं सीएम नजर रखते हैं। हालांकि शिकायतों का निस्तारण भी हो रहा है लेकिन शिकायतों की अनदेखी की लंबी फेहरिस्त भी है। हलांकि सरकारी तंत्र भी अपने बचाव का तरीका ढूंढ रखा है 
शासनादेश के मुताबिक शिकायत करने के एक सप्ताह के अंतराल पर ही ऑनलाइन निस्तारण  हो जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसमें कागजी बाजीगरी का बड़ा भयानक खेल किया जाता है बगैर पक्षकार को विश्वास में लिये ही कागज पर शिकायत निस्तारित हो जाती है। 
कुछ मामले में तो कोई जमीन पर जाता नहीं है और कार्य पूर्ण की रिपोर्ट लगा दी जाती है।
जौनपुर के सादीपुर सिरकोनी के निवासी यूपी सिंह कहते है कि आईजीआरएस में प्रार्थना पत्र दिया गया मौके पर न तो कोई गया न ही कोई जांच की गयी बस घर बैठे ही उनके मामले में रिपोर्ट लगा दी गयी अब मामले को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को मजबूर है और शोषण का शिकार भी हो रहे है। यूपी सिंह की यह बात आईजीआरएस की शिकायतो पर कार्यवाई का सच बता रही है। 
आईजीआरएस पर की गयी शिकायतो के बिषय में वरिष्ठ चिकित्सक डा केपी यादव एवं समाज सेवी सादिक से बात करने पर कहा कि आईजीआरएस पर की गयी शिकायतों का निस्तारित तो होता है। सम्बन्धित अधिकारी फोन आदि करके जानकारी भी करते है। इसकी दहशत अधिकारियों रहती है। 
इस बिषय पर जन सूचना एक्टिविस्ट एवं समाज सेवी लक्ष्मी नारायन यादव से बात करने पर कहा कि अधिकारी ऐन केन प्रकारेण कागज पर जांच प्रक्रिया तो पूरी कर लेते है लेकिन उसका कोई लाभ शिकायत कर्ता को नहीं मिल पाता है। इनका भी मानना है कि अधिकारी घर बैठे ऐसी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देते है कि मामला उलझ जाता है। कागज में निस्तारित भी हो जाता और शिकायत कर्ता की समस्या जस की तस बनी रहती है। उदाहरण दिया जैसे पैमाइश के मामलो में लेखपाल आईजीआरएस की शिकायत पर रिपोर्ट लगा देता है फसल खड़ी है। शिकायत की रिपोर्ट से मामला उलझ जाता है। इसी तरह पुलिस के मामले में घर बैठे रिपोर्ट देना तो आम बात रहती है। शिकायती पत्र के बाबत रंजिश बता कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। 
सूत्र के अनुसार इस पोर्टल पर प्रतिमाह 1500 से 2000 तक शिकायते इस जनपद से जाती हैं। जिसकी मानिटरिंग स्वयं जिलाधिकारी के स्तर से किया जाता हैं। समय से शिकायत का निस्तारण नहीं करने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी होती है। अब तक कई विभागों के अधिकारियों का वेतन भी रोका जा चुका है। इसके बाद इसमें ऐसा कागजी बाजीगरी का खेल होता है कि उसका कोई पुरसाहाल नहीं है। यदि यह कहा जाये कि सरकारी तंत्र ही मुख्यमंत्री के इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए ग्रहण बना है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।

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