हाईकोर्ट का आदेश बिना नोटिस के थाने पर नहीं बुला सकती है पुलिस


हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिसकर्मियों के बीच मौजूद कुछ लोग आम लोगों और पुलिस की सक्षमता दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह पुलिस अधिकारियों का दायित्व है कि वे इसे तत्काल रोकें। जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता को ऐसे अनौपचारिक तरीके से महत्वहीन नहीं किया जा सकता।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना लिखित नोटिस दिए थाने में नहीं बुला सकती। न्यायालय ने राज्य सरकार को दिए आदेश में कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता के तहत ऐसी नोटिस एफआईआर दर्ज होने के बाद ही जारी की जाए। न्यायमूर्ति अरविंद मिश्रा प्रथम और न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने यह भी कहा कि अधीनस्थ पुलिसकर्मी थाना इंचार्ज की अनुमति से ही ऐसा नोटिस जारी कर सकते हैं।

खंडपीठ ने सरोजनी नाम की लड़की के पत्र को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तौर पर दर्ज करते हुए यह आदेश पारित किया। न्यायालय ने आदेश में जोर देकर कहा कि पुलिसकर्मी के महज मौखिक आदेश पर किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और सम्मान को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों की नजीर देते हुए कहा कि जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता को ऐसे अनौपचारिक तरीके से महत्वहीन नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने आदेश में लिखा है कि हम यह दृढ़तापूर्वक कह रहे हैं कि पुलिसकर्मियों के बीच मौजूद कुछ लोग आम लोगों की समस्याओं का फायदा उठाते हैं। वे आम लोगों और पुलिस की सक्षमता दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह पुलिस अधिकारियों का दायित्व है कि वे इसे तत्काल रोकें।


सरोजनी नाम की लड़की ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति को पत्र भेज कर शिकायत की थी कि उसके माता-पिता को आठ अप्रैल को महिला थाना लखनऊ पर फोन कर पुलिस ने बुलाया। वहां जाने पर माता-पिता को अवैध तरीके से हिरासत में ले लिया गया है। बताया कि पुश्तैनी सम्पत्ति का विवाद उसके माता-पिता और भाई-भाभी के बीच चल रहा है। इसी विवाद में माता-पिता को बुलाया गया था। 


महत्वपूर्ण बात यह रही कि मामले की पहली सुनवाई पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि उन्हें प्राप्त निर्देशों के अनुसार ऐसे किसी भी व्यक्ति को न तो थाने पर बुलाया गया और न ही वे आए। हालांकि न्यायालय की ओर से तलब की गई महिला थाने की इंचार्ज दुर्गावती ने शपथ पत्र देकर कोर्ट को बताया कि आठ अप्रैल को हेड कांस्टेबल शैलेंद्र सिंह ने इस दम्पति को थाने पर बुलाया था। इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी। पहले दी गई गलत जानकारी के लिए उन्होंने कोर्ट से माफी भी मांगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि दंपति को साढ़े तीन बजे जाने दिया गया था।


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