भारत सरकार पीएसयू कम्पनियों को का कर सकती है प्राईवेटाईजेसन - मानस पाण्डेय



भारत में आज काफी संख्या में पीएसयू कार्य कर रहे हैं पीएसयू का जब गठन किया गया था तब यह माना गया था कि भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश है और इसमें कुछ इकाइयां निजी क्षेत्र में स्थापित की जाएंगी कुछ सरकार द्वारा स्थापित किया जाएगा और कुछ मिलजुल कर के स्थापित किए जाएंगे इसका तात्पर्य कि निजी क्षेत्र में स्थापित कर सकता है और सरकार भी उसी को लगा सकती है स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृषि  आधारित ही अर्थव्यवस्था थी इसके आधार पर अधिकांश कॉन्ट्रिब्यूशन जीडीपी का कृषि से आता था लेकिन फिर मान्यता बनी औद्योगिक नीति अपनाओ अन्यथा समाप्त हो जाओ इस कड़ी में औद्योगिक इकाइयों का गठन करना था बाजार में पूंजी उपलब्ध नहीं थी इसलिए सरकार ने अपनी पूंजी लगाकर के बड़ी बड़ी औद्योगिक इकाइयों को स्थापित किया बाद में इसलिए बीमार इकाई होने लगे क्योंकि उसके प्रबंधन में सरकारों की रुचि ना होना कर्मचारी संघ का अनायास दबाव होना वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता वैश्वीकरण के युग में प्रतिस्पर्धी ना होना इन्हीं कामों से बहुत से पीएसयू एक बीमार यूनिट में कन्वर्ट और धीरे-धीरे कुछ नए उद्योगपति अच्छी पूंजी के साथ बाजार में आने लगे इसका परिणाम यह रहा कि बाजार में प्रतिस्पर्धा अच्छी होने लगी अब सरकार को यह लगता है कि हम पीएसयू के गठन से उनको वेतन भी दे औऱ बिना कमाए फिर उनके कर्मचारियों को पेंशन भी दें रॉ मेटेरियल का सही उपयोग नहीं हो रहा है इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कुछ रणनीति क्षेत्र के जो है पीएसयू है उनको अपने पास रख कर के अधिकांश देशों को प्राइवेट सेक्टर को देने के लिए निजी क्षेत्र का प्रस्ताव  हैं निजी उद्यमियों को उनको एक फायदा मिलेगा उनको बना बनाया फैक्ट्री मिल जाएगा और उसको वह अपने हिसाब से संचालित कर बाजार में प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपना नाम भी कमा रखा है यह भी एक महत्वपूर्ण पक्ष होगा जिसकी वजह से पीएसयू जिस उद्देश्य के लिए बना लेकिन आज सरकार पर क्यों बोझ बन रहे हैं यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है बीएसएनएल तमाम ऐसे अपने बिजली बोर्ड हैं जिनको की सरकार ने स्वयं स्थापित किया और  एक समय लाभ कमा रहे थे एकाएक निजी क्षेत्रों के आने के बाद से उस में हानि होना  कहीं ना कहीं चिंता का विषय है या यूं कहिए कि जानबूझकर किया गया एक प्रयास है जिसके तहत इनको जो है हानि  या बीमार उद्योग का दर्जा देकर उनसे अपने को मुक्ति पाने का एक रास्ता सरकार सोचती रहती है सरकार का मानना है कि इसके बदले हम वेतन पेंशन के बोझ कुछ कम हो जाएगा।

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