सरकार के बेटी बचाओ के दावे की पोल जानें कैसे खोल रही है सड़क पर लावारिश पड़ी बेटियां


बेटा भाग्य से होता है, पर बेटियां सौभाग्य से होती हैं...। फिर भी न जाने इन बेटियों को कुछ लोग सड़कों पर छोड़ जाते हैं। ये सवाल उठना भी लाजमी है, क्योंकि पिछले 16 महीने में पूर्वांचल में घाट या फिर रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन पर लावारिस हाल में मिलने वाले नवजातों में बेटियों की तादाद ज्यादा है।
एक आँकड़े के अनुसार 16 महीने के दौरान कुल 20 लावारिस बच्चे मिले हैं। इन सबकी उम्र एक साल से भी कम है। इसमें दस बेटियां हैं। यह आंकड़े जुलाई 2022 से अक्तूबर 2023 के बीच के हैं। बेटियों को सड़क या अन्य जगहों पर लावारिस देख लोगों ने चाइल्ड लाइन या पुलिस को सूचना दी। इसके बाद बाल संरक्षण इकाई की तरफ से बाल कल्याण समिति के सामने ले जाया जाता है। बाल कल्याण समिति सुविधा के अनुसार उन्हें आश्रम में पालन पोषण के लिए रखती है। बाल संरक्षण अधिकारी की माने तो रेलवे स्टेशन, रोडवेज और ग्रामीण इलाके से ज्यादा लावारिस बेटियां मिलती हैं।
दो साल से नीचे की जो भी लावारिस बेटियां मिलती हैं, पहले उनके परिवार से संपर्क करने का प्रयास किया जाता है। अगर परिवार से संपर्क नहीं हो पाता तो बाल कल्याण समिति की ओर से नियमानुसार दो माह बाद गोद देने की प्रक्रिया शुरू कराई जाती है। बाल संरक्षण अधिकारी ने बताया कि दो साल से कम उम्र के जो भी बेटियां लावारिस मिलती हैं, उन्हें कोई न कोई गोद ले ही लेता है।
सड़कों पर लावारिस मिलने वाली बच्चियां रानी राम कुमारी विनीता विश्राम और एशियन सहयोगी संस्था इंडिया में रखा जाता है। उनके भरन पोषण की देखरेख बाल संरक्षण इकाई करती है। चाइल्ड लाइन भी भूमिका निभाती है।

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