साहसः स्पर्म डोनेशन से एक महिला पत्रकार बनी मां, आइए जानते है क्या है पूरी कहानी


मध्यप्रदेश के भोपाल की रहने वाली एक महिला ने पुराने रीति-रिवाजों को तोड़कर एक नई राह बनाई है। इस महिला ने बिना पार्टनर के ही मां बनने का फैसला लिया और स्पर्म डोनेशन के माध्यम एक बेटे को जन्म दिया। आज उन्हें अपने इस फैसले पर गर्व है। ये कहानी है ऑल इंडिया रेडियो में न्यूज ब्रॉडकास्टर के रूप में कार्यरत 37 साल की संयुक्ता बनर्जी की है। संयुक्ता का उनके परिवार और दोस्तों ने मानसिक और भावनात्मक सहयोग किया जिसकी वजह से उन्हें ये फैसला लेने में आसानी हुई। उन्हें तीन बार बच्चा गोद लेने के विकल्प मिले थे, लेकिन बच्चा गोद नहीं मिल पाया। इसके बाद एक फैमिली डॉक्टर ने उन्हें आईसीआई तकनीक के बारे में बताया और इस पर अमल करके उन्होंने बिना पार्टनर ही मां बनने के सपने को पूरा किया। 
संयुक्ता का बयान वायरल है कि मेरी शादी 20 अप्रैल 2008 में हुई थी। पति को बच्चा नहीं चाहिए था लेकिन मुझे मातृत्व का सुख लेना था। 2014 में दोनों की राहें अलग हो गईं। 2017 में शादी  टूट गयी । फिर मैंने नए सिरे से जिंदगी शुरू की। चूंकि मैं मातृत्व सुख चाहती थी, इसलिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण प्राधिकरण से बच्चा गोद लेने के लिए दो बार रजिस्ट्रेशन किया, लेकिन नाकाम रही। इसके बाद मेरे फैमिली डॉक्टर ने सेरोगेसी, आईवीएफ, आईसीआई और आईयूआई जैसी तकनीक के बारे में बताया। इसमें बिना पार्टनर के भी मां बना जा सकता था। 
वह कथन हैं कि मैंने आईसीआई तकनीक को अपनाने का निर्णय लिया। इसमें बिना किसी के संपर्क में आए केवल स्पर्म डोनेशन लेना होता है। इसमें डोनर की पहचान गोपनीय रहती है। फरवरी में मुझे पता चला मैंने कंसीव कर लिया है। डॉक्टर की देखरेख में मैंने 24 अगस्त को बेटे को जन्म दिया। पहले मैंने सरोगेसी से बच्चा पैदा करने के बारे में सोचा था लेकिन यह तकनीक बहुत महंगी है। इसमें काफी रुपया खर्च होने के बाद भी सक्सेस रेट बहुत कम है। इसके बाद टेस्ट ट्यूब बेबी पर भी विचार किया लेकिन उसमें भी बात नहीं बनी। तब मैंने आईसीआई तकनीक को अपनाया। 
संयुक्ता कहती हैं कि अगर आप शादी के बंधन में हैं तो मां बने बिना एक महिला अस्तित्व ही न पूरा कर पाए। लेकिन अगर शादीनुमा संस्थान से या तो निकल गए हो या शादी ही नहीं की है तो एक महिला का मां बनना पाप माना जाता है। इस तरह से अब इस समाज की नजरों में मेरा एक पाप सामने आ चुका है और मैं पापी हो गई हूं। वह कहती हैं कि मेरी मां 70 साल की उम्र में साये की तरह मेरे साथ खड़ी रहीं। कुछ दोस्तों ने भी हर मोड़ पर मेरा साथ दिया जिससे राह आसान हो गई।

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