अशोका इंस्टीट्यूट में स्वामी विवेकानंदजी के जीवन साधना पर आधारित पुस्तकों की प्रदर्शनी


वाराणसी। अशोका इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद जी के संबोधन की 129वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में भव्य पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई। स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस सहित योग, जीवन साधना पर आधारित पुस्तकें प्रदर्शनी में रखी गईं। प्रदर्शनी का उद्देश्य युवाओं को स्वामी विवेकानंद के विचारों से जोड़ना है।
विवेकानंद विचार दर्शन चल पुस्तकालय की ओर से आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए अशोका इंस्टीट्यूट की निदेशक डा.सारिका श्रीवास्तव ने स्टूडेंट्स को स्वामी विवेकानंदजी की शिक्षा और मूल्यों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के एक उत्साही शिष्य और भारत में हिंदू धर्म के पुनरुद्धार में एक प्रमुख शक्ति थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई पुस्तकें लिखीं। उनकी पुस्तकें हमेशा युवाओं को प्रेरित करती आई हैं।
डा.सारिका ने यह भी कहा कि स्वामी विवेकानंद अपने विचारों की वजह से सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पहचाने गए। देश विदेश की यात्रा के दौरान उनके द्वारा दिए गए भाषणों का संकलन उनकी कई किताबों में मिलता है। स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित किताबों में राजयोग, कर्मयोग, भक्ति योग, ज्ञानयोग, माई मास्टर, लेक्चर्स फ्रॉम कोलंबो टू अल्मोड़ा प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन (12 जनवरी) को युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद जी को एक सन्यासी, गुरू, आध्यात्मिक नेता धर्मगुरू, जैसे कई नामों से जाना जाता है। कोलकाता के एक सामान्य परिवार में जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त युवा होते-होते पूरी तरह आध्यात्म में रम गए। जब महान गुरु रामकृष्ण परमहंस का उन्हें सानिध्य मिला, तो नरेंद्र नाथ से विवेकानंद बनने की यात्रा शुरू हुई। भारत देश के वेदांत ज्ञान को दुनिया के सामने लाने का कार्य जिस सुंदर तरीके से स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में हुई धर्म संसद में किया, उससे भला कौन परिचित नहीं है।
फार्मेसी विभाग के प्रिंसिपल डा.बृजेश सिंह ने कहा कि कर्मयोग स्वामी विवेकानंद की विख्यात पुस्तक है। इस किताब का हर अध्याय स्वामी जी के व्याख्यानों का लिपिबद्ध रूप है। इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद द्वारा दिसंबर 1895 से जनवरी 1896 के बीच दिए भाषणों का संकलन है। इस पुस्तक में कर्म के चरित्र पर प्रभाव के बारे में बताया गया है। स्वामीजी के अनुसार कर्मयोग वस्तुतः निःस्वार्थपरता और सत्कर्म द्वारा मुक्ति लाभ करने की एक विशिष्ट प्रणाली है। स्वामी जी का मानना था कि बिना किसी निजी स्वार्थ के लोककल्याण के लिए अपना कर्तव्य सर्वश्रेष्ठ तरीके से करना ही कर्म योग है। आदर्श पुरुष तो वे हैं, जो परम शान्ति और स्थिरता के बीच भी तीव्र कर्म का, और प्रबल कर्मशीलता के बीच भी मरुस्थल की शान्ति व निस्तब्धता का अनुभव करते हैं।
इस अवसर पर कालेज के शिक्षक डा.अश्वमेध मौर्य, डा.अजय भूषण प्रसाद, डा.शना फातिमा, अर्जुन केसरी, डा.फरहान अहमद, राजेंद्र तिवारी, प्रीति मौर्य, अजय कुशवाहा, शुभम विश्वकर्मा, तुषार पटेल, आरिफा सिद्दकी, प्रियंका मिश्रा, प्रदीप सिंह, एसके मौर्य, नीरज राय, प्रेम वर्मा के अलावा बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स उपस्थित थे। टीचर और स्टूडेंट्स ने स्वामी जी के जीवन पर आधारित पुस्तकों का अवलोकन किया और खरीदा।

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