पंचायत चुनावः आरक्षण प्रक्रिया पर रोक के पीछे किसका हाथ,क्या है खेल इसे टटोलती एक रिपोर्ट
जौनपुर। पंचायत चुनाव के आरक्षण पर हाईकोर्ट कोर्ट द्वारा लगायी गयी रोक के बाद एक जबरदस्त एवं गम्भीर सवाल खड़ा हो गया है। जब हाईकोर्ट के ही आदेश से पंचायत चुनाव की प्रक्रिया तेज गति से चल रही थी तो आखिर आरक्षण प्रक्रिया के बहाने चुनाव प्रक्रिया को विलम्ब करने के पीछे कारण क्या था। क्या महज एक सामान्य याचिका ही है अथवा कोई और कारण है।
हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण प्रक्रिया की अन्तिम प्रकाशन सूची पर हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाये जाने के तुरंत बाद ही अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार ने प्रदेश के सभी जनपदों के जिलाधिकारी को आदेश दिया आरक्षण प्रक्रिया को रोक दिया गया है अग्रिम आदेश तक अन्तिम प्रकाशन सूची जारी किया जाना रोक दिया जाये। हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाये जाने के बाद सरकार ने भी राहत की सांस ले ली है।
यहाँ पर बता दे कि सरकार द्वारा दिये गये फार्मूले के आधार पर जब से प्रदेश के पंचायत चुनाव के लिए सभी पदों का आरक्षण जारी किया गया था तभी से सरकार और संगठन तथा सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों के बीच जबरजस्त खींच तान चल रही थी। पंचायतों के परिसीमन का पेंच भी फंस गया था। सरकार चुनाव के जल्द बाजी में नहीं थी लेकिन कोर्ट के शक्ति पर 15 मई तक चुनाव कराने के लिए गति तेज कर दिया था। अब आरक्षण पर रोक सरकार को संजीवनी प्रदान कर दिया है।
याचिका कर्ता अजय कुमार ने अपनी याचिका में 2015 के आधार पर आरक्षण करने की मांग करते हैं जबकि याचिका में 1995 के आगे के चुनावों को आधार बनाये जाने को चुनौती दी गयी है।आरक्षण के फार्मूले से संगठन के लोग खासे नाराज हो रहे थे। बड़ी संख्या में भाजपा के पदाधिकारी, सांसद, विधायक जो पंचायत के चुनाव में आने की तैयारी कर रहे थे उनके सपने टूट गये थे। आरक्षण की वजह से चुनाव प्रक्रिया से बाहर हो गये थे। वर्तमान आरक्षण का लाभ पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति को अधिक मिलता नजर आ रहा था। पार्टी मे बढ़ते असन्तोष को रोकने के लिए सरकार के पास केवल एक बिकल्प बचा था वह था न्याय पालिका और याचिका दायर हुई सरकार अपने मिशन में सफल हो गयी है।
हालांकि आने वाले कल यानी सोमवार 15 मार्च 21को सरकार की ओर से जबाब लगाने का आदेश है जबाब भी लगेगा लेकिन अब आरक्षण की व्यवस्था में बदलाव की बड़ी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। अब सरकार जहां संगठन और पार्टी के जनप्रतिनिधियों को खुश करने का काम कर लेगी वहीं पर पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति की संख्या कम करने की जुगत भी लगाने का प्रयास जरूर कर सकती है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए कहा जाये कि यह न्याय पालिका का खेल सरकार के इशारे पर हुआ है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।
बहुत सही सर वास्तविकता यही हैं सत्ता पक्ष के लोग नाराज न होने पाये इनकी यही प्राथमिकता रही हैं
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