247वीं बार गूंजे वैदिक मंत्र, जौनपुर रियासत की हवेली में हुआ शस्त्र पूजन
यह परंपरा कोई नई नहीं, बल्कि वर्ष 1778 से चली आ रही है, जब प्रथम नरेश राजा शिवलाल दत्त ने विजयादशमी पर शस्त्र पूजन और दरबार की शुरुआत की थी। तब से अब तक यह दिव्य अनुष्ठान वर्ष दर वर्ष नवरात्रि और विजयादशमी पर्व का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है। इस वर्ष यह आयोजन अपने 247वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है।
शाही वैभव का नजारा
दरबार हाल में सजी शाही सजावट, परंपरागत पोशाक—साफे की पगड़ी और काली कोट धारण किए गणमान्यजनों की उपस्थिति ने वातावरण को और अधिक राजसी बना दिया। राजा जौनपुर के दरबार का यह दृश्य वर्षों से जिले की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में लोगों को आकर्षित करता रहा है।
इतिहास की झलक
राज डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. अखिलेश्वर शुक्ल ने बताया कि नरेश राजा शिवलाल दत्त ने शस्त्र पूजन की नींव रखी थी। इसके बाद दूसरे नरेश राजा बाल दत्त की धर्मपत्नी महारानी तिलक कुंवर ने वर्ष 1848 में पोखरे पर विशाल मेले की शुरुआत की, जबकि वर्ष 1845 में रामलीला की परंपरा आरंभ की। यह रामलीला वाराणसी के रामनगर की तर्ज पर आयोजित होती थी, जिसमें युद्ध, रावण दहन और राजतिलक के दृश्य पूरे आयोजन को भव्यता प्रदान करते थे।
परंपरा का अनुपम संगम
आज भले ही अनेक संस्थाएं और परिवार शस्त्र पूजन कर रहे हों, किंतु जौनपुर रियासत की हवेली स्थित दरबार हाल में संपन्न होने वाला शस्त्र पूजन अपनी भव्यता और राजसी गरिमा के लिए अद्वितीय है। राजपुरोहित की अगुवाई में पांच पंडितों द्वारा सम्पन्न यह आयोजन जौनपुर की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की धरोहर के रूप में जीवंत है।
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