गुल से बुलबुल का झगड़ा कराते दुनियां को अलविदा कह दिये शायर आकिल जौनपुरी
जौनपुर। साहित्य पुरोधा, सद्भाव के प्रतीक,समाज सेवी और पत्रकार शहपर उर्दू अखबार के संस्थापक एवं जवाँ दोस्त अखबार के सम्पादक , हर दिल अज़ीज़ मशहूर शायर आकिल जौनपुरी अब हमारे बीच नहीं रहे बीती रात को उनका निधन हो गया है । उनकी उम्र लगभग ६५ वर्ष थी। निधन का समाचार आते ही पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। l
आकिल जौनपुरी की हिंदी उर्दू दोनो ही भाषाओं में बेहतरीन पकड़ थी। ये अंतर्रष्ट्रीय स्तर के शायर स्वर्गीय कामिल शफीकी के पुत्र एवं सक्षम उत्तराधिकारी थे। साहित्यिक सृजन के अतिरिक्त संचालन में भी उन्हें महारत हासिल थी। कोशिश संस्था द्वारा उन्हें आजीवन उपलब्धि सम्मान से सम्मानित भी किया गया था। उर्दू की रचनाओं की प्रस्तुति हेतु पूरे देश में इनको आमंत्रित किया जाता रहा है। अकील जौनपुरी उर्दू के काव्य वाचन से देश की ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा रहे हैं।
अकील जौनपुरी के निधन पर कोशिश साहित्यिक संस्था ने शोक सभा किया और उनके असामयिक निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। शोक सभा की अध्यक्षता प्रो. आर. एन. सिंह ने किया। इस मौके पर प्रो अनूप वशिष्ठ, डॉ. पी. सी विश्वकर्मा, गिरीश कुमार श्रीवास्तव, अशोक मिश्रा, प्रखर, अनिल उपाधाय, विमला सिंह, अमृत प्रकाश, राम जीत मिश्रा, मोनिस जौनपुरी, असीम मछलीशहरी, जनार्दन प्रसाद, पाषाण एवं पारुल आदि ने उन्हें इंसानियत का प्रतीक बताया और कहा कि साहित्य के समवर्धन एवं साम्प्रदायिक एकता के लिए ऊनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
आकिल जी ने कई पुस्तकों की रचना एव सम्पादन भी किया है। एक पत्रकार के रूप में कई अखबारो से भी जुड़े रहे।
उनके कुछ यादगार शेर हर किसी के दिलोदिमाग़ पर ताज़ा बने रहते है।” कभी सुना था ऐसा लफड़ा, गुल का है बुलबुल से झगड़ा,: कमज़ोरों को मार रहे हो, उससे निपटो जो है तगड़ा; ये भी तो जुल्मों सितम का तोड़ है, तीर खाकर मुस्कुराना चाहिए; वो नागिन इसलिए भी है परेशा, जिसे देखो सपेरा हो गया है।
ये तमाम यादगार शेर उनकी बेहतरीन सोच के प्रतीक है-अभी तो उनसे बहुत कुछ हासिल करना था, सभी को पर आकिल जी सो गए दास्ताँ कहते- कहते।
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