देश में जीडीपी को जबरजस्त झटका 40 वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट, शून्य से नीचे गयी



सरकार की गलत नीतियों एवं निर्णयों के चलते कोरोना महामारी के बीच घोषित लॉकडाउन के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर को जबर्दस्त झटका लगा है। सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक विकास दर में 40 साल में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर शून्य से 23.9 फीसदी नीचे दर्ज की गई। हालांकि सरकार का कहना है कि लॉकडाउन के कारण अधिकांश आर्थिक गतिविधियां बंद होने के कारण यह गिरावट दर्ज की गई है और दूसरी व तीसरी तिमाही के दौरान विकास दर में तेजी दर्ज की जाएगी।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के मुताबिक पहली तिमाही के दौरान कृषि को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों में भारी गिरावट दर्ज की गई। आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान विकास दर 5.2 फीसदी थी जबकि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में विकास दर 3.1 फीसदी थी।


इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र ही विकास दर के लिए संतोषजनक रहा है और कृषि क्षेत्र में विकास दर बीते साल के 3 फ़ीसदी की तुलना में 3.4 फीसदी रही। विनिर्माण के क्षेत्र में विकास दर को जबर्दस्त झटका लगा और यह तीन फासदी की तुलना में शून्य से 39.3 फीसदी नीचे पहुंच गई। इसके साथ ही व्यापार, संचार, ऊर्जा, सेवा, खनन और परिवहन सहित सभी क्षेत्रों में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार कीवी सुब्रमणियम ने चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में आई रिकॉर्ड गिरावट पर सरकार का बचाव किया है। ‌ उनका कहना है कि वैश्विक झटकों की वजह से भारत की जीडीपी में 23.9 फ़ीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के कारण भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था भी संकट के दौर में फंसी हुई है।



उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति जीडीपी दर 1870 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। सुब्रमणियम के मुताबिक इसमें 150 वर्षों की बड़ी गिरावट दर्ज होने से अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर प्रभावित होना स्वाभाविक है। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि कोरोना के कारण होटल और टूरिज्म जैसे क्षेत्रों को सबसे जबर्दस्त मार झेलनी पड़ी है और दुनिया भर में रोजगार के साथ ही कमाई पर भी काफी असर पड़ा है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी कोरोना के कारण लंबे समय तक लॉकडाउन के दौर को झेलना पड़ा है। लेकिन इसमें छूट मिलने के बाद अर्थव्यवस्था में वी शेप का सुधार आता दिख रहा है।


इसका मतलब पूरी तरह साफ है कि गिरावट के बाद अर्थव्यवस्था अब तेजी से सुधर रही है। उन्होंने कहा कि जून के बाद से आर्थिकद गतिविधियों में लगातार तेजी आ रही है और आने वाले दिनों में विकास दर पर भी इसका असर पड़ेगा।

वैसे रिजर्व बैंक का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के दौरान भी शून्य से नीचे रहने की आशंका है। यह बात रिजर्व बैंक की सालाना आर्थिक रिपोर्ट में कही गई है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का मानना है कि कोरोना महामारी दैवीय आपदा है और इसने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। उनका कहना है कि पूरे साल के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट की स्थिति कायम रह सकती है।


वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रणब सेन का कहना है कि कोरोना के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान करीब 13 लाख करोड़ रुपए की चपत लगी है। उनका कहना है कि अगर त्योहारी सीजन के दौरान सरकार खपत बढ़ाने में कामयाब रही तो हम चौथी तिमाही के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर में सुधार की उम्मीद कर सकते हैं।

उनका कहना है कि इसके साथ ही सरकारी निवेश को पिछले साल के स्तर तक ले जाना भी जरूरी है। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ सुदीप्तो मंडल ने कहा कि राजस्व में आ रही गिरावट की भरपाई करना असंभव है। उन्होंने कहा कि अगर महंगाई के दबाव से बचाव करना है तो सरकार को और पैसा खर्च करना पड़ेगा।

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