बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का सच तलाशेगी पुरातत्व विभाग की टीम,जज का फैसला





द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट ने आज गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को दिया है और रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश करने को कहा है.
कोर्ट के इस फैसले के साथ एक बार फिर मंदिर पक्ष की उम्मीदें बढ़ गई हैं, जिनका दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर और उसके नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के लिहाज से पुरातात्विक अवशेष हैं. वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के दिए गए फैसले के बाद सुनवाई की अगली तारीख 31 मई को तय की है.
कोर्ट ने केंद्र के पुरातत्व विभाग के 5 लोगों की टीम बनाकर पूरे परिसर का रिसर्च कराने को लेकर फैसला दिया. कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर पक्ष के लोगों में फैसला सुनाया. पुरातात्विक सर्वेक्षण मामले पर वादी मंदिर पक्ष के प्रार्थना पत्र पर सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में 2 अप्रैल को फैसला सुरक्षित कर लिया था.
अब यह बात जल्द स्पष्ट हो जाएगी कि वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे और आसपास के पूरे इलाके में पुरातात्विक लिहाज से है क्या? वहां हिंदू देवी-देवताओं या फिर काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े अवशेष तो नहीं हैं? इसी के बाबत वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी की अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर पक्ष की ओर से 1991 से चल रहे इस मामले में दिसंबर 2019 को पुरातात्विक सर्वे की मांग के प्रार्थना पत्र पर पूरे ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वे करने का आदेश निदेशक, नई दिल्ली को दिया है.
इस आदेश में खास यह है कि सर्वे करने वाली टीम 5 सदस्यों की होगी, जिसमें 2 अल्पसंख्यक समुदाय के जबकि 3 अन्य होंगे. इस टीम को भी एक एक्सपर्ट की ओर से मॉनिटर किया जाएगा. जो किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पुरातत्व विषय के वैज्ञानिक होंगे. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को उत्तर प्रदेश के पुरातत्व विभाग मदद करेगी. 
इस बारे में काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार और वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी की अदालत में 2019 में मंदिर पक्ष की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया था और यह निवेदन भी किया गया था कि पूरे ज्ञानवापी परिसर में पुरातन विश्वनाथ मंदिर मौजूद था और उसे 1669 में गिराकर एक विवादित ढांचा तैयार कर दिया गया था और पुरातन मंदिर के उस परिसर में सारे अवशेष यथा स्थान मौजूद हैं. यह भी कहा गया था कि इस ढांचे के नीचे स्वयंभू विशेश्वर का 100 फिट का ज्योर्तिलिंग भी हैं और उसे पत्थर के पटिये से ढक दिया गया है.
उन्होंने कहा कि पुरातत्व विभाग इसका सर्वे करके उत्खनन करके यथा स्थान पर प्रकट करे और उसके बारे में जो कुछ भी पुरातात्विक साक्ष्य है वह न्यायालय में प्रस्तुत करे. इस पर हुई बहस के बाद न्यायालय ने मंदिर पक्ष के पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और यूपी सरकार को निर्देशित किया है कि वे अपने खर्चे से पुरातात्विक सर्वेक्षण करके आख्या न्यायालय में प्रस्तुत करे कि इस विवादित ढांचे के पूर्व पहले कभी कोई मंदिर का अवशेष था कि नहीं?
वकील रस्तोगी ने बताया कि यह हिंदू पक्ष के लिए बहुत बड़ी जीत है क्योंकि सारा मुद्दा इसी पर निर्भर करता था क्योंकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि ग्राउंड पर हमेशा से ही मस्जिद चला आ रहा है, जबकि हिंदू पक्ष का दावा था कि मंदिर तोड़कर मस्जिद उस स्थान पर बनी है. अगर यह साक्ष्य आ जाएगा कि मंदिर के अवशेष वहां थे और हैं अगर उसे तोड़कर यह ढांचा बनाया गया है तो वादी के पक्ष में फैसला आने में देर नहीं लगेगी. सर्वेक्षण रिपोर्ट आने के बाद वादी पक्ष की ओर साक्ष्य दिए जाएंगे.
आदेश की कॉपी मिलने के बाद अगला कदम
इस मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ के वकील मोहम्मद तैहीद खान ने बताया कि विश्वनाथ मंदिर की ओर पुरातात्विक सर्वे का आदेश कोर्ट ने पारित कर दिया है. जजमेंट की कॉपी मिलने के बाद और स्टडी करने के बाद ही रिवीजन करना है कि रिट करना है यह तय होगा. उन्होंने बताया कि इस स्टेज पर साक्ष्य जुटाने के लिए सर्वे नहीं कराना चाहिए था, लेकिन कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए आगे का लिगल एक्शन लिया जाएगा.
इससे पहले 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद मामले में पिछले हफ्ते तब एक नया मोड़ जब पुरातात्विक सर्वेक्षण मामले पर वादी मंदिर पक्ष के प्रार्थना पत्र पर शुक्रवार को लंबी सुनवाई हुई और दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया. इस पर 8 अप्रैल की फैसले की तारीख तय की गई थी.
पिछले दो सालों से भी ज्यादा वक्त से पूरे ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र के पुरातात्विक सर्वे की मांग करने वाले प्रार्थना पर फैसला अचानक तेजी से सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपने ट्रांसफर होने के ठीक पहले सुनवाई करके सुरक्षित कर दिया.
खास बात यह है कि पिछले दिनों संबंधित सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी के ट्रांसफर ऑर्डर वाराणसी से शाहजहांपुर का आ चुका है. जज आशुतोष तिवारी को 9 अप्रैल को अपना चार्ज हैंडओवर करना है. हैंडओवर देने से पहले उन्होंने इस मामले पर अपना फैसला सुना दिया है.
काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार और वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया था कि औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था, लेकिन उस फरमान में वहां मस्जिद कायम करने का फरमान कहीं से भी नहीं दिया गया था. फिर भी यह विवादित ढांचा वहां बना दिया गया. विवादित ढांचा काशी विश्वनाथ मंदिर की जगह पर ही बनाया गया है.
हालांकि प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल प्रतिवाद पत्र में दावा किया गया कि यहां विश्वनाथ मंदिर कभी था ही नहीं और औरंगजेब बादशाह ने उसे कभी तोड़ा ही नहीं. जबकि मस्जिद अनंत काल से कायम है. उन्होंने अपने परिवाद पत्र में यह भी माना कि कम से कम 1669 से यह ढांचा कायम चला आ रहा है।.


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