शोहदा-ए-कर्बला की याद में नम हुई आंखे, या हुसैन अलविदा की गूंजी सदाएं*
*अलविदा अलविदा ऐ हुसैन अलविदा की गूंजीं सजाएं*
अय्यामे अजा के आखिरी दिनों में मजलिसों व जुलूसों का सिलसिला जारी है। इसी के अन्तर्गत मोहल्ला अजमेरी में स्वर्गीय सैय्यद अली शब्बर (सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी) के मकान पर अलविदाई मजलिस का आयोजन हुआ। इसमें शामिल होकर अज़ादारो ने कर्बला के शहीदों का ग़म मनाया और अलम की ज़ियारत किया।
मजलिस में सोज़ख्वानी आमिर मेहंदी कजगांवी ने और पेशख़्वानी मेहंदी ज़ैदी व कैफी मोहम्मदाबादी ने किया। ईरान से तालीम लेकर आयें मौलाना सै कदीर हैदर रज़ा ने मजलिस को सम्बोधित करते हुए बताया कि मुहर्रम का चांद होने के बाद से शिया समुदाय दो महीना आठ दिन गम मनाते हैं। अब गम के तीन दिन ही बचे है। इसलिए दिल खोलकर शहीदाने कर्बला का ग़मा मनाते हुए बीबी फातिमा को पुरसा दीजिए।
आगे मौलाना ने कहा की रसूले ख़ुदा हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने दीने इस्लाम को बचाने के लिए अपनी और अपने साथियों की कुर्बानी दी। जिसको रहती दुनिया याद करती रहेगी।
उन्होंने शोहदा-ए-कर्बला की कुर्बानियाें को याद किया और उन पर हुएं मसाएब पढ़ा जिसे सुनकर अकीदतमंदों की आंखे नम हो गई। उसके बाद शबीहे अलम निकाला गया।
अन्जुमन गुलशने इस्लाम बाजार भुआ ने नौहा पढ़ा व मातम किया। अन्त में क़मर जौनपुरी का लिखा अलविदाई नौहा तनवीर जौनपुरी ने अपनी ग़मगीन आवाज़ में पढ़ा- "अलविदा अलविदा ऐ हुसैन अलविदा, अलविदा ऐ शहे मशरेकैन अलविदा। अपने दिल में लिए यादें करबोबला, आया माहे अज़ा और गुज़र भी गया। हक़ के मातम न फिर भी अदा हो सका। क्यों न रोएं यहीं कह के अहले अज़ा, अलविदा अलविदा ऐ हुसैन अलविदा"।
हुसैन मुस्तफा वजीह ने आयें हुए लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर मौलाना सै शाज़ान ज़ैदी, सै मो मुस्तफा, कायम आब्दी, अनवारुल हसन, मोहम्मद हसनैन अहसन, ज़ीशान काज़मी, असद हैदर, मोहसिन खान, अमीरुल हसन, शारिब, आबिद रज़ा आदि उपस्थित रहे।
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