मुलायम सिंह के जन्म दिन पर जानें किस तरह से एक हो सकते है शिवपाल और अखिलेश


समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सि‍ंह यादव के जन्मदिन यानी 22 नवंबर को एक बार फिर पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव व शिवपाल स‍िंंह यादव के एक साथ आने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है। दोनों के एक होने की संभावनाओं को तब और बल मिलता दिख रहा है जब बुधवार को अखिलेश ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वह चाचा शिवपाल की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से न केवल गठबंधन करेंगे बल्कि उनको सपा में पूरा सम्मान भी दिया जाएगा।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सामने मजबूती के साथ समाजवादी पार्टी को खड़ा करने के लिए अखिलेश यादव ने कई स्तरों पर तैयारी तेज कर दी है। दलित व पिछड़ी जातियों के दूसरे दलों में उपेक्षित चल रहे नेताओं को अपनी पार्टी में लाने के साथ ही परिवार को भी एकजुट करने की कोशिश में लगे हैं। पिछले चुनावों में चाचा शिवपाल यादव के अलग होने का खामियाजा सपा को भुगतना पड़ा। ऐसे में सूबे की सत्ता को हासिल करने के लिए विधानसभा चुनाव से पहले अंदरखाने परिवार को भी एकजुट करने की कोशिशें की जा रही हैं। इस संबंध में परिवार के वरिष्ठ सदस्यों की कई बार बैठकें भी हो चुकी है।
यूं तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में सत्ता का संघर्ष शुरू हुआ था। इस संघर्ष में चाचा व भतीजा ने अलग-अलग राह पकड़ ली थी। अखिलेश यादव का पूरा अधिकार सपा पर हो गया था जबकि शिवपाल यादव ने वर्ष 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी। वैसे शिवपाल की पार्टी का अभी तक कोई खास प्रदर्शन भले न रहा रहा हो, लेकिन उनकी पार्टी सपा के वोट जरूर काट रही है। शिवपाल ने उस समय सपा में सम्मान न मिलने की बात कहकर अलग राह पकड़ ली थी। वहीं, आज अखिलेश ने पार्टी में चाचा का पूरा सम्मान देने की बात कहकर रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने का काम किया है।
सूत्रों के अनुसार दीपावली के मौके पर सैफई में एक बार फिर यादव परिवार जुटेगा। इसमें परिवार की एकता की पटकथा को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है। इसके बाद 22 नवंबर को मुलायम स‍िंंह यादव के जन्मदिन पर भव्य आयोजन कर अखिलेश व शिवपाल एक मंच पर आ सकते हैं। ऐसा हुआ तो पांच बाद फिर यादव परिवार एक हो जाएगा।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बसपा से गठबंधन किया था, ङ्क्षकतु उसे कोई लाभ नहीं मिला। सपा की झोली में काफी मशक्कत के बाद भी केवल पांच सीटें ही आ सकी थीं। उसे 18.11 फीसद वोट मिले थे। मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन यह कहते हुए तोड़ दिया था कि सपा न सिर्फ अपने प्रभाव वाली सीटें बचा पाई बल्कि अपने वोट भी बसपा को नहीं दिलवा पाई। उस समय शिवपाल की पार्टी ने अलग चुनाव लड़ा था। यही वजह है कि अपने गढ़ में भी सपा सीटें हार गई थी। इसी चूक को सुधारने के लिए इस बार अखिलेश अपने चाचा के साथ गठबंधन को तैयार हैं।
सीटों के बंटवारे को लेकर जल्द अखिलेश व शिवपाल के बीच बैठक होने की उम्मीद है। इसमें सीटों की संख्या पर अंतिम फैसला हो सकता है। सूत्रों के अनुसार इसके बाद शिवपाल यादव गठबंधन के लिए प्रचार में जुट जाएंगे। शिवपाल के आने से अखिलेश को भी राहत मिल जाएगी। उन्हें संगठन के अनुभवी नेता मिल जाएंगे।

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