दलितो के नेता पारसनाथ मौर्य का लम्बी बीमारी के चलते लखनऊ अस्पताल में हुआ निधन, अन्तेष्टि जौनपुर स्थित रामघाट पर हुई



जौनपुर। बौद्ध धर्म आंदोलन जुड़े लोकतंत्र रक्षक सेनानी, प्रदेश सरकार के पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री पारसनाथ मौर्य का बुधवार की देर रात लगभग 11 बजे निधन हो गया। 83 वर्ष की उम्र में लखनऊ स्थित सिविल अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। निधन के पश्चात उनकी डेड बाडी को जौनपुर उनके पैतृक आवास भगौतीपुर शीतला चौकियां लाया गया। जहां पर गार्ड ऑफ ऑनर के बाद रामघाट पर गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार  कर दिया गया।
जौनपुर स्थित शीतला चौकियां क्षेत्र के भगौतीपुर गांव के मूल निवासी दर्जा प्राप्त पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्य तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती की सरकार में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे। मायावती सरकार के सत्ता से हटने के बाद प्रदेश में हुए तमाम राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद वह बसपा में ही बने रहे।
सपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री सपा सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव के साथ दलितों, पिछड़ों व शोषितों को जगाने में इन्होंने लंबे समय तक देश के विभिन्न प्रांतों में आंदोलन का हिस्सा बने थे। सपा की उस समय जब सरकार बनी तो उनके कार्यकाल में वह पशुपालन विभाग के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर संसदीय सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा था। 
बौद्धधर्म आंदोलन से जुड़े रहे पारसनाथ मौर्य की दलितों, शोषितों में अच्छी पकड़ के चलते वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ इन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया था। लोकतंत्र रक्षक सेनानी रहे पारसनाथ मौर्य के निधन के बाद गुरुवार की सुबह उनका पार्थिव शरीर पैतृक आवास भगौतीपुर लाया गया। जहां लोगों ने पहुंचकर शोक व्यक्त किया। पुलिस कर्मियों ने उनके आवास पर गार्ड आफ आनर दिया। तत्पश्चात अंत्येष्टि के लिए शव यात्रा पंचहटिया स्थित रामघाट पहुंची, जहां मुखाग्नि उनके राजीव रत्न मौर्य ने दिया।

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