मोहन राय की जयन्ती 20 दिसम्बर को जो व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था थे जानें इतिहास



कोई चलता पद चिन्हों पर कोई पद चिन्ह बनाता है। है वही सूरमा इस जग में, जो जन-जन में पूजा जाता है।

जौनपुर। जनपद मुख्यालय से लगभग 10 किमी  दूर ग्रामीण क्षेत्र के सरैयां गांव में भरत राय के पुत्र के रूप में 20 दिसम्बर 1913 को जन्म लेने वाले जनार्दन प्रसाद राय उर्फ मोहन राय 12 वर्ष की अवस्था में आर0एस0एस0 से जुड़ गये और संघ की शाखा में जाना शुरू कर दिये। फिर स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिया मिला लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की उपाधि और पेंशन लेने से इनकार कर दिया। वर्ष 1935 में इन्होंने बाला साहब देवरस के साथ कार्य करना प्रारम्भ किया। इसी बीच कुशभाऊ ठाकरे व सभी सर संघ संचालक के सानिध्य में प्रचारक जीवन के रूप में कार्य करते रहे। उ0प्र0 के तमाम जिलों में एवं बिहार, झारखण्ड, म0प्र0 आदि राज्यों में कार्य किया। इस दौरान इनकी मित्रता प्रचारक रहे स्व0 हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ‘‘हरीश’’ जी से हुई, जो बाद में उत्तर प्रदेश सरकार के वित्तमंत्री हुए। कानपुर में कार्य करने के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी इनका सानिध्य प्राप्त हुआ। अटल जी इन्हें भाई की दृष्टि से आदर करते थे। बाबा साहब देवरस ने इनके स्वभाव व व्यवहार को देखते हुए इनके मूल नाम जर्नादन प्रसाद राय से इन्हें न पुकार कर उनको मोहन जी कहने लगे। बाद में यह मोहन जी के नाम से विख्यात हुए। प्रचारक जीवन में इन्होंने अध्ययन कर वैद्य की जानकारी ली और एक अच्छे वैद्य के रूप में भी जाने जाते थे। इन्होंने कुछ समय बाद संघ का मुख्य केन्द्र आगरा चुना और वहीं स्थित रहकर कार्य करने लगे और अपने सम्पूर्ण जीवन में भारत मां के प्रति अलख जगाने का कार्य किया।  इनके पिता की मृत्यु बचपन में होने के कारण ये स्वतंत्र विचार के थे। इनकी देखरेख व परवरिश इनके चाचा करते थे, जो कि मुख्तार हुआ करते थे और मुख्तार राय के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने जबरन इनकी शादी कर दी कि यह घर पर ही रह जाये और फिर इन्होंने जौनपुर केन्द्र मानकर संघ की शाखा लगाना प्रारम्भ कर दिया। इस दौरान इनकी पत्नी सरजू देवी से तीन पुत्र बृजभूषण राय, शशिभूषण राय, दिवाकर राय का जन्म हुआ। जिनके छः पौत्र आशुतोष राय, अमित राय, विजय राय, अखिल राय, मनीष राय व विपिन राय तथा दो पौत्री रूचि राय, सोनाली राय हैं। ये शादी से कुछ वर्षों के बाद घर से आगरा चले गये और वहीं रहकर अपने देश सेवा के व्रत को पूर्ण करने में आजीवन लगे रहे।
आजादी की लड़ाई में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, वर्ष 1944 में उन्हें जेल की सजा हुई, उन्हें जौनपुर जेल में रखा गया। उसके बाद दो वर्ष अज्ञात रहे, जिसके चलते परिवार वालों को यह विश्वास हो गया कि शायद वह अब नहीं रहे। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो पुनः वापस घर आये। दो वर्षों तक जिले में कार्य किया। बताते है कि अखण्ड भारत का मूल मानचित्र उन्हीं के पास था, जिसे प्राप्त करने के लिये पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 इन्दिरा गांधी ने उन पर पचास लाख रूपये का इनाम घोषित किया था। जिनकी गिरफ्तारी के लिये फोर्स भी दिल्ली से भेजी गई थी। इतना ही नहीं स्व0 मोहन राय वैद्य जी ने सीतापुर, मथुरा, मानिकपुर चित्रकूट कई स्थानों पर आदिवासियों के लिये निःशुल्क स्कूल और अस्पताल खोले, जो आज भी संचालित है। जिसके संरक्षक रहे स्व0 108 महंत श्री अवैद्यनाथ जी गोरखपुर, स्व0 गोविन्द हरी सिंहानिया जी कानपुर, स्व0 माधव जी देशमुख काशी रहे। जिसको आज भी स्व0 मोहन राय के पौत्र मनीष राय जी के द्वारा संचालित किया जा रहा है।
स्व0 मोहन राय जी कांग्रेस पार्टी के उत्पीड़न से तंग आकर उन्होंने स्व0 यादवेन्द्र दत्त दूबे (राजा जौनपुर) के सुझाव पर जनसंघ पार्टी की स्थापना के संस्थापक सदस्य बने। संघ में रहते हुए विश्व हिन्दू परिषद के संस्थापक रहे और उ0प्र0 एवं बिहार के अध्यक्ष के रूप में संगठन को बढ़ाने का कार्य भी किया। 
कानपुर, सीतापुर, लखनऊ आदि जिलों में कार्य किया। यह भारती जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे। इन दिनों भाजपा में व संघ में रहे। मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, कलराज मिश्र, ओमप्रकाश सिंह, कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्त आदि ने इनका मार्गदर्शन व सानिध्य प्राप्त हुआ। 108 वर्ष की अवस्था में 13 मई 2021 को मोहन राय गोलोक वासी हो गये। ऐसे मार्गदर्शक और व्यक्तित्व को अब समाज का शत शत नमन है।

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