माँ बिटिया कभी हमारी तरह जिन्दगी जी के देख़ो
शिकायतें बहुत है न तुम्हें
हमसे तो सुनो न बिटिया
कभी हमारी तरह जिंदगी
जी के देखों न....!
नहीं समझ आता है न अभी
अपने जिद के आगे
कोई नहीं हमसे जहां तक
बन पड़ेगा हम तुम्हारा साथ
वहां तक देंगे और कभी
भी यह कामना नहीं करेंगे
कि तुम जियो हमारी तरह
तंग चारदिवारी के बीच हर
सुबह चूल्हे में आग फूंक कर
खाना अच्छा नहीं बना है
सर झुका कर सुन लेना
और जल्दबाजी में जले अंगीठी से
हाथों को छुपा के रखना
ये उलाहने सुनना और न
जाने क्या-क्या !
तुम समेटे रहना अपने
ख्यालों को सिर्फ जो हम बता
रहें हैं!
मगर तुम कभी मेरी
तरह चुप न रहना कभी भी
अपनी जिंदगी तरस भरी
निगाहों में मत जीना तुम
वो कह देना जो हम अपनी
जहन में छिपा कर आंखों को
नरम कर देते थे हम जो तुम्हारे
बाबू जी द्वारा नशें में एक छन्नाटेदार
थप्पड़ पर हम वहां से निकल
भाग किसी कोने में छुपा करते थे
बस तुम मेरे जिंदगी के यात्रा को
समझ लेना बस यही उम्मीद है
बिटिया तुम मुझसा नहीं जीना!
उड़ान-मेरी कलम की सोच (सौम्या राय)
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