सरसों शरमाई बहुत,सुन गेहूँ की बात, चलो वसंती हम करें, जल्दी फेरे सात



जौनपुर। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कोशिश की मासिक काव्य-गोष्ठी प्रख्यात साहित्यकार प्रो अनूप वशिष्ठ की अध्यक्षता में रामेश्वर शिशु विहार रासमंडल जौनपुर में संपन्न हुई। सरस्वती वंदना के पश्चात गिरीश जी का शेर--क्यूं न आए हंसी जमाने को, खुद को सूरज समझ रहा जुगुनू। सामाजिक विद्रूपताओं पर भर‌पूर प्रहार कर गया। अशोक मिश्र का दोहा---सरसो शरमाई बहुत,सुन गेहूं की बात।चलो वसंती हम करें, जल्दी फेरे सात।। गोष्ठी में फागुनी रंग चढ़ा दिया। वहीं गीता श्रीवास्तव का शेर --एक पर में जमाने ने जो कह दिया,उसको कहने में मुझको ज़माने लगे।
प्रेम की अजीब दास्तां सुना गया।सभाजीत द्विवेदी प्रखर की पंक्तियां--अक्ल जिनकी है तीन कौड़ी की उनके उपदेश पी रहा हूं मैं। पाखंड का शव परीक्षण करतीं लगीं। जनार्दन अष्ठाना का होली गीत-रंग डारो पिया अपने रंग में, रंग डारो। खूब पसंद किया गया। अंसार जौनपुरी का शेर‌--पहुंच गया है जुंनुं बेखुदी की सरहद तक। रूमानी अंदाज से लुभा गया।प्रेम जौनपुरी का शेर‌--दी दुवा दिल से, जुबां से दिया, दिया,न दिया । गोष्ठी में आध्यात्मिक रंग घोल गया।प्रो आर.एन.सिंह  का गीत--पाशविकता बढ़ रही, सद्भावना है घट रहा। छीजते मानवीय मूल्यों पर सटीक टिप्पणी कर गया।
प्रो.अनूप वशिष्ठ का शेर‌--तुम्हे देखा तो आंखों ने तुम्हें ही देखना चाहा/बताना भी बहुत चाहा, बहुत कुछ पूछना चाहा/श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गोष्ठी में रामजीत मिश्र, फूलचंद भारती,संजय सागर,ओपी खरे, आसिफ़ फर्रूखाबादी, दमयंती सिंह, राजेश पाण्डेय, नंदलाल समीर ,संजय सेठ, रमेशचंद्र सेठ, शशांक मिश्र,नेहा सिंह, रूपेश साथी, राजेन्द्र सिंह, नितिन शुक्ल,चन्द्रमणि पांडे आदि ने काव्य पाठ किया। संचालन अशोक मिश्र और आभार डाक्टर विमला सिंह ने किया।

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