यूपी में मतांतरण के खिलाफ पहली सजा, इस मौलाना को 10 वर्ष की कारावास



एक ओर पूरे देश में मतांतरण को लेकर तरह-तरह की बहस छिड़ी है। वहीं बलरामपुर में जरवा कोतवाली के हलौरा गांवा निवासी मौलाना मोहम्मद जमील को महिला व उसके चार बच्चों के अपहरण व मतांतरण के आरोप में 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई है। जनपद न्यायाधीश लल्लू सिंह ने कारावास के साथ ही 50 हजार रुपये अर्थदंड व पीड़ित विष्णु को पांच लाख रुपये प्रतिकर देने का आदेश दिया है।
जिला शासकीय अधिवक्ता कुलदीप सिंह का दावा है कि मतांतरण के मामले में यह उत्तर प्रदेश में पहली सजा सुनाई गई है। मुकदमा दर्ज होने के सात माह में ही अभियुक्त को सजा मिली है। जिला शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि अभियुक्त ने हलौरा निवासी विष्णु की पत्नी व बच्चों का 12 अप्रैल को अपहरण कर लिया था। विष्णु ने प्रार्थना पत्र में कहा कि उसकी पत्नी गांव के ही मौलाना जमील के घर मजदूरी करने जाती थी। मौलाना ने बहला-फुसलाकर पत्नी व उसके चार छोटे बच्चों का धर्म परिवर्तन करा दिया।


दो नाबालिग बेटों का खतना कराकर नाम बदल दिया। दो नाबालिग पुत्रियों को भी अपने धर्म के मुताबिक दूसरा नाम दे दिया। आठ साल के बेटे का मदरसे में दाखिला कराया, जिसमें पिता के स्थान पर अपना नाम दर्ज करा दिया। पहले तो पीड़ित अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए कोतवाली व अधिकारियों की चौखट पर दस्तक देता रहा। बाद में उसने अपने बच्चों को मतांतरण से बचाने के लिए गुहार लगाई।

नौ जून को उसने बच्चों का मतांतरण करा दिया। 12 जून को मुकदमा दर्ज करने के बाद जरवा पुलिस आरोपित को महिला व बच्चों समेत बरामद कर थाना ले आई। दोनों बेटों का चिकित्सीय परीक्षण कराया गया। मेडिकल में बच्चों के मतांतरण की पुष्टि हुई थी। जिला एवं सत्र न्यायालय में अभियोजन की ओर से पांच गवाहों का बयान दर्ज कराया गया।


अभियोजन के तर्कों को स्वीकार करते हुए प्रकरण को सामूहिक मतांतरण माना गया। इसे सामाजिक समरसता व सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध बताया। जिला शासकीय अधिवक्ता ने बताया कि अभियुक्त को धर्म परिवर्तन अधिनियम के तहत 10 वर्ष कारावास, 50 हजार रुपये अर्थदंड की सजा मिली है। संभवत: यह प्रदेश का पहला मामला है जिसमें इस अधिनियम के तहत सजा सुनाई गई है।

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