यदि चीन ने युद्ध की स्थिति पैदा किया तो भारत अकेला नहीं होगा, बिना युद्ध लड़े ही विजयी भव में - डा. अखिलेश्वर शुक्ला


 

कोरोना वायरस  से तबाह दुनियां के अधिकांश देशों ने अब यह मान लिया है कि कोरोना का जन्म चीन की कोंख से हुआ है। वही इस संक्रमण का जन्मदाता है। अपने व्यापार नीति का लोहा दुनियां को मनवाने वाला चीन यह समझ लिया था कि - इस आपदा काल में मैं जो कुछ भी करूंगा उसका प्रतिकार करने की क्षमता किसी के पास नहीं होगी। सर्वाधिक शक्ति संपन्न अमेरिका सहित यूरोप के देश जब तबाही की हालत में पहुंच गये , तो चीन ब्यापारिक गतिविधियों को तेज करता नजर आया। लेकिन ब्यापारिक छल-कपट पर अनेकों देशों से बेइज्जती झेलनी पड़ी। तभी उसने साउथ चाइना सी में अपनी सैनिक सक्रियता बढ़ा दी।जिसका परिणाम हुआ कि ताइवान सहित चीन के पड़ोसी मुल्क हाई एलर्ट पर आ गये। संक्रमण की मार झेल रहा अमेरिका भी पहुंचने में विलम्ब नहीं किया। स्थिति इतनी भयावह हो गई कि विश्व युद्ध का प्रारंभ होना तय माना जाने लगा।                                                                       
चीन ने फिर पैंतरा बदला और लद्दाख की गलवान घाटी की तरफ अपना रूख कर लिया। 04-05  मई 2020 को भारतीय फौज का सामना उसे 2017 की यादें ताजा कर दिया। ऐसे में चतुर चीन ने अपने युद्ध नीति का सहारा लेते हुए कुटील वार्ता का दौर शुरू किया। चीन को यह पता था कि अमन पसंद भारत युद्ध नहीं करना चाहेगा। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि  "धरती को माता और हिमालय को पिता" मानने वाले भारत के वीर जवान इसकी रक्षा के लिए प्राणों की बलि देकर शहीद हो सकते हैं। यही हुआ 15 -16 जून को। समझौते के बाद भी  पीछे नहीं हटना , टेंट नहीं हटाना, कर्नल संतोष बाबू, एक जेसीओ तथा एक जवान को घेर लेना भारी पड़ा। जिसका परिणाम हुआ कि बिहार रेजिमेंट के अपने वरिष्ठ अधिकारी के शहादत का बदला  बिहार रेजिमेंट की एक टुकड़ी ने धावा बोलकर 43 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार कर लिया।कई चीनी टेंटों को जलाकर ,कईयों का हांथ, पैर, गर्दन मरोड़ कर अपने आक्रोश का एहसास कराया। यह वही जुझारू बिहार रेजीमेंट है, जिसने कारगील की दुर्गम घाटी में ‌विजय पताका (तिरंगा) फहराया था। लेकिन चीन अपने सैनिकों की मौत पर तब तकचुप्पी साधे रखा, जब तक कि शवों को ठीकाने नहीं लगा लिया। काफी दिनों की चुप्पी तोडते हुए अब स्वीकार किया है कि " हमारा एक कमांडर और बीस से कम सैनिक मारे गए हैं।" यह है कुटिल चीन का चरित्र।             भारतीय फौज ने लद्दाख सहित सभी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर युद्धक सामग्री तथा जवानों की तैनाती कर दिया है। एक बार फिर वार्ता के छल-प्रपंच में फंसाकर 23जून को पीछे हटने पर तैयार तो हो गया है। लेकिन अभी भी चीन की कुटिलता स्पस्ट देखा जा सकता है।                                  वास्तव में भारत को अब ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यकता है। पाकिस्तानी सीमा को भी चीन की सीमा समक्षते हुए, अपनी सेना की चौकसी बढानी होगी। चीन अफवाह फ़ैलाने की युद्ध नीति पर भी काम करेगा। जैविक हथियार का भी भय दिखाकर अपनी सीमा विस्तार नीति को ‌आगे बढ़ाना चाहेगा।                                                      राष्ट्र रक्षा तथा राष्ट्रीय हित के मुद्दे पर भारतीय जन मानस सजग व सचेत है। राजनीतिक दलों को सतही बयानों से परहेज़ करते हुए  "गिरगिट से भी तेज रंग बदलने वाले दुश्मन"  से सावधान रहने की चुनौती है। संसद में गृहमंत्री का वह बयान, जिसमें यह कहा गया था कि "अधिकृत कश्मीर भी हम ‌लेकर रहेंगे।" चीन अधिकृत "अक्साई" भी  कश्मीर का हिस्सा है। जिसको लेकर चीन चिंतित हैं। यही कारण है कि वह अधिक से अधिक भारतीय क्षेञों पर रात के अंधेरे में, बर्फबारी के समय में , कब्जा करने की रणनीति पर काम करता रहा है। भारतीय मीडिया ,चैनल, ट्वीटर  पर राजनीतिक बयानवीरों की भ्रमपूर्ण बयानबाजी से आम जनता उब सी रही है। दलगत राजनीति से उपर उठकर राष्ट्र रक्षा के लिए बर्फिली पहाड़ियों में तैनात अपने देश के वीर जवानों को स्मरण करें। जो भारत भूमि की रक्षा करने के लिए हिमालय की गुफाओं में तपस्या कर रहे हैं।
 चीन को लगता था कि -कोरोना बम धमाके से विश्व विजेता बन कर उभरेंगे, चीन ने सोचा था कि -विश्व बाजार हमारे मुट्ठी में होगी, चीन ने सोचा था कि , साऊथ चाइना सी में सभी पड़ोसी कांप उठेंगे, चीन ने सोंचा था कि- शीघ्र ही खरबपति बनकर विश्व पटल पर एक महाशक्ति के रूप में अवतरित होंगे। लेकिन विक्षीप्त महत्त्वाकांक्षी  चीन ऐसे जगह पहुंच गया है ,- जो भारत का आध्यात्मिक केंद्र रहा है। यदि चीन ने युद्ध की स्थिति पैदा कर दिया तो भारत अकेला नहीं होगा। चीन को अपनी सीमा के सभी मोर्चो पर लडना होगा। फिर युद्ध का अंजाम क्या होगा- आसानी से समझा जा सकता है                           

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