कांग्रेस नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लगा जबर्दस्त झटका, गयी विधान परिषद की सदस्यता



 लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की सरकार में कद्दावर मंत्री रहे और बसपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए नसीमुद्दीन सिद्दीकी की यूपी विधान परिषद की सदस्यता समाप्त कर दी गई है। विधान परिषद के सभापति रमेश यादव ने बसपा के विधान परिषद दल के नेता सुनील कुमार चित्तौड की याचिका पर फैसला देते हुए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को 22 फरवरी 2018 से विधान परिषद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया है।
बता दे कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी 23 जनवरी 2015 को बहुजन समाज पार्टी से विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे और विधान परिषद में बसपा के विधानमंडल दल के नेता भी थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बसपा नेतृत्व से मनमुटाव के बाद 27 मई 2017 को उन्होंने अपना एक अलग दल राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा बना लिया था। इस पर बसपा के विधान परिषद दल के नेता सुनील चित्तौड़ ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी की सदस्यता समाप्त करने के लिए एक याचिका विधान परिषद सभापति के समक्ष पेश की लेकिन सभापति ने उक्त याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि याचिका तथ्यों से यह साबित नहीं होता कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपने मूल राजनीतिक दल बसपा छोड़ दी है।
इसके बाद 22 फरवरी 2018 को नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। इस पर बसपा के विधान परिषद दल के नेता सुनील चित्तौड़ ने सर्वोच्च न्यायालय के राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य के वाद में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए फिर से विधान परिषद सभापति के समक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी की विधान परिषद सदस्यता समाप्त करने की याचिका पेश की। इस याचिका में सुनील चित्तौड़ ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि सदस्यता उसी दिन से अयोग्य मानी जायेगी जिस दिन से सदस्य ने स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल का त्याग किया हो।
इस याचिका पर सभापति ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को अपना पक्ष रखने के लिए तीन बार 15-15 दिन का समय दिया गया। इसके बाद 24 सितम्बर 2018 को सभापति के समक्ष दोनों पक्षों की सुनवाई हुई। सुनवाई में नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने का अनुरोध किया गया और कहा गया कि उनके ऊपर दल-बदल कानून किसी भी प्रकार से लागू नहीं होता है। इसलिए याचिका निरस्त कर देनी चाहिए। इसके साथ ही नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपना पक्ष रखते हुए यह भी कहा कि उन्होंने बसपा छोड़ी नहीं थी बल्कि उन्हे बसपा से निकाला गया था और सभापति ने उन्हे असम्बद्ध घोषित करते हुए परिषद में मान्यता दी थी और उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता असम्बद्ध सदस्य के तौर पर ग्रहण की थी।

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