पंचायत चुनाव में सियासी दलों का अखाड़ा बनने की प्रबल संभावना, पार्टी बैनर पर हो सकता है चुनाव


उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव को लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। पंचायत चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। भाजपा की ओर से सिंबल पर पंचायत चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद साफ हो गया है कि यह चुनाव सियासी दलों की राजनीति का बड़ा अखाड़ा बनेगा। सियासी जानकारों का मानना है कि सिंबल पर चुनाव लड़ने से भाजपा को सियासी फायदा हो सकता है। हाल के दिनों में भाजपा ने कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा इस चुनाव के दौरान पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में जुटी हुई है। दूसरी ओर सपा, बसपा और कांग्रेस आदि दल भी पंचायत चुनाव के जरिए अपनी सियासी ताकत दिखाना चाहते हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव को 2022 में होने वाले फाइनल मुकाबले से पहले सेमीफाइनल मुकाबला माना जा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल ने कहा कि जिला पंचायत सदस्य व जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के सिंबल पर लड़ा जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि ग्राम पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत प्रमुख पद पर पार्टी बिना सिंबल के चुनाव लड़ेगी। बंसल ने स्पष्ट किया है कि प्रधान पद पर पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता चुनाव मैदान में उतर सकता है मगर जिला पंचायत अध्यक्ष और अध्यक्ष पद पर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी ही किस्मत आजमाएंगे। उन्होंने कहा कि अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ पर्चा भरने वाले कार्यकर्ताओं को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया जाएगा।

भाजपा पंचायत चुनाव के दौरान पूरी ताकत लगाने की तैयारी में जुटी हुई है। बंसल का कहना है कि प्रत्येक जिला पंचायत के वार्ड को मजबूत करने के लिए भाजपा हर वार्ड में सम्मेलन करेगी और महाअभियान चलाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भाजपा ने 19000 कार्यकर्ताओं को पंचायत चुनाव में सक्रिय योगदान के लिए जिम्मेदारी सौंपी है। सियासी जानकारों का मानना है कि सिंबल पर चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा को पंचायत चुनाव के दौरान फायदा हो सकता है। हाल के दिनों में भाजपा ने कर्नाटक और गोवा सहित कई राज्यों के ऐसे चुनाव में अपनी ताकत दिखाई भी है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी स्पष्ट किया है कि भाजपा केवल जिला पंचायत का चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए संगठन की ओर से मानक तय किया गया है। उन्होंने कहा कि बाकी पदों पर हमें हस्तक्षेप नहीं करना है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होगा कि ग्राम पंचायतों में गलत लोग चुनकर आएं। गोरखपुर में आयोजित पार्टी पदाधिकारियों की एक बैठक में उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायतों में अच्छे लोग चुने जाने चाहिए और ये ऐसे लोग होना चाहिए जिन्हें भाजपा से भावनात्मक लगाव हो। उन्होंने संगठन की मजबूती के लिए पीएम मोदी के हर बूथ को जीतने के आह्वान को दोहराया।

इस बार के पंचायत चुनाव में सियासी दलों की ओर से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारने की तैयारी की गई है। इनमें भाजपा के अलावा कांग्रेस, बसपा, सपा, अपना दल, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम भी शामिल हैं। पार्टी नेताओं ने गांवों में दस्तक देने की शुरुआत कर दी है जिससे प्रदेश का सियासी माहौल गरमाने लगा है।


भाजपा ने पंचायत चुनाव को पार्टी स्तर पर लड़ने की घोषणा करके सियासी माहौल गरम कर दिया है। भाजपा नेताओं का मानना है कि पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव को पार्टी काफी अहम मान रही है। यही कारण है कि पार्टी पंचायत चुनाव में अधिकृत उम्मीदवार उतारकर अपनी ताकत आजमाएगी। पंचायत चुनाव के लिए पार्टी की ओर से प्रदेश भर में जिला संयोजकों की नियुक्ति की गई है। इसके साथ ही मंत्रियों को भी चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

दूसरी ओर राज्य में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी भी पंचायत चुनाव के जरिए भाजपा को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटी हुई है। जिलों में समाजवादी पार्टी के नेता पंचायत चुनाव की तैयारियों के लिए सक्रिय हो गए हैं। पार्टी ने जिला पंचायत चुनाव पार्टी स्तर पर लड़ने का फैसला किया है। पार्टी ने प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्य के लिए भी अधिकृत प्रत्याशी उतारने का मन बनाया है। बसपा और कांग्रेस की ओर से भी पंचायत चुनाव के दौरान ताकत झोंकने की तैयारी है।

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