सियासतदानों की गिद्ध दृष्टि इस समय ब्राह्मण वोटों पर , पटाने के लिये हितैषी बनने की होड़ लगी



कपिल देव मौर्य 

प्रदेश की सियासत में इन दिनों यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का हितैषी बनने की होड़ है। हर दल स्वयं को इस वर्ग का सच्चा हमदर्द बताने की कोशिश में है। लम्बे समय से शांत पड़ी जातिवादी राजनीति के पीछे सबसे बड़ा कारण ‘मिशन 2022’ छिपा है। कानपुर के बिकरू कांड के बाद से सत्ताधारी भाजपा समेत विपक्षी दल सपा, बसपा आौर कांग्रेस अभी से इस मुहिम में जुट गए हे। जहां योगी सरकार डैमेज कंट्रोल में लगी है वहीं विपक्षी दल हाथ आए इस मौके को गंवाना नहीं चाहते हैं। पर सवाल इस बात का है कि राजनीतिक दलों ने अपनी सरकारों में ब्राह्मणों को कितना प्रतिनिधित्व दिया है ? राजनीतिक गलियारों में इस पर कई तरह के सवाल उठाये जा रहे है।
अखिलेश से ज्यादा मुलायम मंत्रिमंडल में मिला स्थान
पिछले तीन दशकों से जातिवादी राजनीति में उलझे रहे उत्तर प्रदेश में यदि पिछली चार सरकारों की बात करें तो हर दल की सरकारों में ब्राम्हणों का प्रतिनिधित्व मिलता रहा है। ये बात अलग है कि किसी दल में कम तो किसी में अधिक रहा है। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जब 2003 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो इसमें कैबिनेट मंत्री के तौर पर डॉ अशोक वाजपेयी, राजाराम पाण्डेय, हरिशंकर तिवारी, ब्रम्हशंकर तिवारी, राजपाल त्यागी और दुर्गा प्रसाद मिश्र शामिल हुए जबकि राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में कामेष्वर उपाध्याय को शामिल किया गया।
मायावती सरकार भी नहीं रही पीछे
इसके बाद जब 2007 में जब यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए तो इसमें पहली बार बसपा अध्यक्ष मायावती ने एक नया प्रयोग कर 86 सवर्णो को टिकट दिए। इनमें 56 ब्राम्हण प्रत्याशी थें जिनमें से 41 चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद जब 13 मई 2007 को 206 विधायकों वाली बसपा सरकार का गठन हुआ तो इसमें कैबिनेट मंत्री (मुख्यमंत्री से सम्बद्व) सतीष चन्द्र मिश्र,रामवीर उपाध्याय, राकेशधर त्रिपाठी और नकुल दुबे का शामिल किया गया। जबकि राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में रंगनाथ मिश्र, लखीराम नागर और अनन्त कुमार मिश्र शामिल हुए। मायावती के नेतृत्व वाली इस सरकार में राज्यमंत्री के तौर पर राजेश त्रिपाठी और दद्दन मिश्र भी शामिल थें।
अखिलेश मंत्रिमंडल में मुस्लिम और पिछड़ा समाज रहा हावी
पांच साल पूरा करने के बाद जब 2012 में यूपी विधानसभा के आम चुनाव हुए तो पिछडों और मुस्लिमों की पार्टी कही जाने वाली समाजवादी पार्टी सत्ता में लौटी। 21 ब्राम्हण समेत 224 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी जब सत्तासीन हुई तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल में केवल दो कैबिनेट मंत्री ब्रम्हशंकर त्रिपाठी और राजाराम पाण्डेय को ही शामिल किया। जबकि राज्मंत्री (स्वतंत्र्र प्रभार) के तौर पर विजय कुमार मिश्र और राज्यमंत्री के रूप में अभिषेक मिश्र, कैलाश चौरसिया, मनोज कुमार पाण्डेय और तेज नारायण पाण्डेय को शामिल किया। हालांकि बाद में कुछ का प्रमोशन भी किया गया।
योगी सरकार में डिप्टी सीएम समेत दस मंत्री शामिल
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के खिलाफ भाजपा के जारी अभियान के तहत 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद जब योगी आदित्य नाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो ब्राम्हण समुदाय के जबरदस्त समर्थन के चलते इस चुनाव में रिकार्ड तोड 58 ब्राम्हण प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 19 मार्च 2017 को गठित भाजपा सरकार में जहां डा दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया। वहीं इस समय अन्य कैबिनेट मंत्रियों में ब्रजेश पाठक, श्रीकांत शर्मा , और रामनरेश अग्निहोत्री शामिल है। जबकि राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उपेन्द्र तिवारी,नीलकंठ तिवारी और सतीश त्रिवेदी शामिल हैं जबकि राज्यमंत्रियों में आनन्द स्वरूप शुक्ल, चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय ओर अनिल शर्मा शामिल हैं।
अब यदि आंकडों पर गौर करे तो 1993 में भाजपा के 17, 1996 में 14, 2002 में 08, 2007 में 03 और 2012 में 06 ब्राह्मण विधायक थे। जबकि 2017 की विधानसभा में भाजपा के 306 में से 58 ब्राम्हण विधायक है।
वहीं, बसपा के 1993 में कोई नहीं, 1996 में 02, 2002 में 04, 2007 में 41 और 2012 में 10 ब्राह्मण विधायक थे। जबकि इस समय बसपा के कुल 18 विधायकों में तीन ब्राम्हण विधायक शामिल हैं।
इसी तरह सपा के 1993 में 02, 1996 में 03, 2002 में 10 (2003 में सरकार गठन के समय दूसरे दलों से भी आए), 2007 में 11 और 2012 में 21 और 2017 की विधानसभा में पार्टी के कुल 48 विधायकों में तीन ब्राम्हण विधायक शामिल है।
वहीं कभी ब्राम्हणों के सबसे बडे वोट बैंक की हकदार कही जाने वाली कांग्रेस के 1993 में 05, 1996 में 04, 2002 में 01, 2007 में 02 और 2012 में 03 ब्राह्मण तथा 2017 में कुल 07 विधायकों में केवल एक ब्राम्हण विधायक विधानसभा में है। हलांकि कांग्रेस भी ब्राह्मण दांव चलते हुए जतिन प्रसाद को मैदान में उतार दिया है। साथ ही ब्राह्मणहितों की बहस शुरू कर दिया है। 
ऊंट किस करवट बैठता है यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि ब्राह्मण भाजपा का दामन छोड़ने का मन बनाता नजर आ रहा है। सरकार की नीतियों से नाराज ब्राह्मण 2022 के आम चुनाव में सत्ता परिवर्तक साबित हो सकता है ।सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस समय यह है कि सत्ता धारी को पटकनी देने की स्थिति में कौन है इस पर मंथन चल रहा है। 

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