जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु जिलाधिकारी ने दिया ढैंचा की खेती पर जोर
डॉ. चंद्र ने बताया कि ढैंचा एक ऐसी फसल है जिसे केवल डेढ़ महीने में उगाकर खेतों में जोत दिया जाता है। इसकी जड़ों में मौजूद गांठों में भरपूर नाइट्रोजन होता है, जिससे मिट्टी की जैविक संरचना मजबूत होती है। इसके उपयोग से यूरिया, डीएपी, पोटाश जैसे महंगे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता काफी हद तक घट जाती है।
जिलाधिकारी ने किसानों से आह्वान किया कि वे इस कम लागत वाली, पर्यावरण-संवेदनशील और लाभकारी विधि को अपनाएं ताकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ द्वारा निर्धारित किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को साकार किया जा सके।
ढैंचा न केवल हरी खाद के रूप में उपयोगी है, बल्कि इसके रस में कीटनाशक गुण भी होते हैं। साथ ही, यह पौधा कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित कर मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाता है और भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, ढैंचा के प्रयोग से खरपतवार और कीटों की समस्या घटती है तथा सह-फसल के रूप में इसका उपयोग भी लाभकारी है। इस प्रकार यह फसल न केवल हरित क्रांति, बल्कि श्वेत क्रांति को भी बल देती है।
डॉ. चंद्र ने अंत में कहा कि “हमें अपनी पारंपरिक खेती की ओर लौटते हुए आधुनिक जैविक तरीकों को अपनाना चाहिए, ताकि धरती, किसान और उपभोक्ता – तीनों का हित सुनिश्चित किया जा सके।”
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