लाक डाऊन में न्यायपालिका ने जमानत में दी राहत, अब संगीन अपराधो में भी मुचलके पर होगी जमानत



सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आधार पर हाईकोर्ट ने ने प्रदेश की सभी दीवानी न्यायालयो  को दिया है निर्देश 

 जौनपुर। कोविड 19 वैश्विक महामारी ने न्यायपालिका को भी अपने न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन करने को मजबूर कर दिया है।  इसकेे  चलते देश में लागू लाक डाऊन के दौरान तमाम मजबूरियों को दृष्टिगत रखते हुए अब न्यायपालिका ने संगीन आरोपो में  जमानत के मामले में तमाम तरह की रियायते देने का निर्णय लेते हुए सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आधार पर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से सभी जिला अदालतों को नया आदेश जारी कराया है। इस आदेश के तहत अब हत्या से लगायत दहेज हत्या सहित अन्य तमाम संगीन मामलों में भी यदि  अदालतें जमानत का पर्याप्त आधार पा रही है और  आरोपियों को रिहा करने का आदेश जारी करती हैं तो उन्हें  निजी मुचलके पर छोड़ा जा सकता है। जमानतदार देना आवश्यक नहीं है। इस आशय का आदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रदेश की सभी  जिला अदालतों को भेजा गया है। 
संक्रमण के इस दौर में हाईकोर्ट ने एक आदेश से ऑरेंज व ग्रीन जोन की जिला अदालतों को खोलने का निर्णय लेते हुए  जमानत पर सुनवाई के लिए निर्देश दिया है । इसी आदेश के क्रम में यहाँ जनपद की दीवानी न्यायालय की अदालतें गत 8 मई से अपना काम शुरू कर दी है । जमानत पर सुनवाई हो रही है और  केवल अधिवक्ता ही  न्यायालय में प्रवेश कर रहे हैं वादकारियों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है।
             (अधिवक्ता समर बहादुर यादव )

  यहाँ बतादे  कि लॉकडाउन के चलते आरोपियों की जमानत लेने के लिए जमानतदारों को दूर दराज से आने में दिक्कतों को देखते  हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी दीवानी न्यायालय  की  जिला अदालतों को आदेश दिया है और कहा है कि संगीन मामलों में भी बंदियों को जमानत देने का यदि पर्याप्त आधार कोर्ट को मिलता है तो उन्हें निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया जाये । जमानतदार देना आवश्यक नहीं है। कोर्ट आरोपियों को रिहा करने के आदेश करते समय आवश्यक शर्तें लगा सकती है। हाईकोर्ट ने सभी जिला अदालतों के जिला जज को यह भी निर्देश दिया कि न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दें कि जिन आरोपियों को जमानत का आधार पर्याप्त पाते हुए रिहा करने का आदेश दिया जाये, उन्हें व्यक्तिगत बंधपत्र पर छोड़ा जाए। उनसे जमानतदार देने की अपेक्षा न की जाए। इस संबंध में अधिवक्ता समर बहादुर यादव  ने जानकारी दी है कि इस आदेश का लाभ उन आरोपियों को नहीं मिलेगा जो आतंकी गतिविधियों में संलिप्त हो अथवा  ऑर्गेनाइज्ड क्राईम करने के आरोप में गिरफ्तार किए गये  हैं।

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