बड़ा सवालः क्या योगी आदित्यनाथ मान जाएंगे दिल्ली की बात ?,क्या यूपी सरकार और संगठन सब ठीक नहीं है?



लगता है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सरकार और संगठन में सब कुछ ठीक नहीं है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले वहां की सियासत एकाएक गरमा गई है और ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार और संगठन में कुछ चेहरों की अदला बदली हो सकती है. इसी कवायद को पूरा करने के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने लखनऊ में डेरा डाल दिये है और वे मंत्रियों विधायकों से अलग-अलग मुलाकात कर उनका मन टटोलने में जुटे हैं।
 इस बाबत पार्टी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष और संगठन के प्रदेश महामंत्री सुनील बंसल तथा प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह व प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह सोमवार को पूरे दिन चिंतन मंथन करते नजर आये है। इसके बाद शाम को मुख्यमंत्री आवास पर योगी आदित्यनाथ के साथ भी बैठक का सिलसिला जारी रहा। तो आज मंगलवार को अयोध्या में आरएसएस प्रचारकों की भी एक बड़ी बैठक होने वाली है। जिसमें सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले उपस्थिति रहेंगे। संगठन और सरकार के बीच आरएसएस बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में है। 
दरअसल, बीजेपी चाहती है कि चुनाव से पहले प्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष बदला जाए. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को इस पद पर लाया जाए और नौकरशाह रह चुके ए के शर्मा को उप मुख्यमंत्री बना दिया जाये. लेकिन संघ परिवार को करीब से समझने वाले जानते हैं कि उत्तर भारत की राजनीति में हिंदुत्व के प्रबल चेहरे की पहचान बना चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद अब उस मुकाम तक पहुंच चुका है, जहां उनकी मर्जी के बगैर सरकार व संगठन में परिवर्तन की कल्पना ही मुश्किल है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ संगठन के इस फार्मूले को मानेंगे? कोरोना से निपटने की रणनीति से लेकर हाल ही में हुए पंचायत चुनावों में पार्टी के कमजोर प्रदर्शन को लेकर योगी और मौर्य के बीच बढ़ती खटास से सभी वाकिफ हैं. ऐसे में क्या योगी इसके लिए तैयार होंगे. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष बन जाने के बाद वे मौर्य की बातों को मानने से इनकार नहीं कर सकते।
हिंदुत्व वाहिनी के जरिये अलख जगाने वाले और संत समाज में पर्याप्त सम्मान हासिल करने वाले योगी के बारे में बताया जाता है कि संघ परिवार में भी उतना ही महत्व दिया जाता है. शायद यही वजह है कि संघ के बड़े पदाधिकारी भी उनकी कही बात को नजरअंदाज नहीं कर पाते। दलमत है कि दत्तात्रेय होसबोले जब संघ के सह सर कार्यवाह थे, तब उनका केंद्र लखनऊ ही था और उस दौरान उन्होंने यूपी की राजनीति के साथ ही योगी की सरकार चलाने की शैली को भी बेहद नजदीक से देखा है. होसबोले अब सर कार्यवाह बन चुके हैं. पिछले हफ़्ते वह लखनऊ गए थे जहां सीएम योगी से भी उनकी मुलाकात हुई।
सूत्रों की मानें तो उसी समय योगी ने आलाकमान के सुझाए फार्मूले को न मानने का संकेत दे दिया था. उनका इशारा था कि "जो जहां हैं, उसे वहीं बने रहने दिया जाये. अगर किसी नए चेहरे को डिप्टी सीएम बनाना ही है, तो बना लो." हालांकि तब योगी ने साथ ही यह जुमला भी जड़ दिया कि "अगर वे इतने ही योग्य हैं तो उन्हें दिल्ली ले जाइए, MHA में बैठा दीजिये." इस जुमले का अर्थ वे लोग समझ गए होंगे जो दिल्ली और लखनऊ के बीच पर्दे के पीछे से चल रही रस्साकशी की बारीकियों को जानते हैं.
बहरहाल, इस सच से उनके विरोधी भी इंकार नहीं कर सकते कि योगी की छवि एक सख्त प्रशासक और घनघोर हिन्दूवादी नेता होने के साथ ही मददगार संन्यासी की भी है. कठोर तप के जरिये गुरु गोरखनाथ की गद्दी तक पहुंचने वाला इस कद का संत-नेता बीजेपी के पास दूसरा कोई नहीं है, लिहाजा दोबारा सत्ता में वापसी के लिए पार्टी को उनकी सुननी ही पड़ेगी।

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