विधान सभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में जानें किन मुद्दो पर रहा जोर,कहां क्या रहा प्रभावी


विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बृहस्पतिवार को पश्चिमी यूपी के मतदाताओं ने सियासी दिग्गजों का खूब इम्तिहान लिया। 11 जिलों की 58 सीटों पर भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। यहां प्रदेश सरकार के नौ मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। चुनिंदा सीटों पर ही बसपा और कांग्रेस मजबूती से लड़ते दिखे। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आंदोलन का असर देखने को मिला। भले ही पश्चिमी यूपी के जिलों में राजनीतिक पारा चढ़ा रहा हो, लेकिन लोकतंत्र के पर्व में लोगों ने आमतौर पर शांतिपूर्ण तरीके से शिरकत की।
जिन 58 सीटों पर मतदान हुआ है, वे मेरठ, सहारनपुर, अलीगढ़ और आगरा मंडल में पड़ती हैं। यह क्षेत्र दिल्ली बॉर्डर पर 13 महीने किसान आंदोलन से प्रभावित रहा था। पहले चरण की 58 सीटों पर वर्ष 2017 में भाजपा ने 53, सपा और बसपा ने दो-दो तथा रालोद ने एक सीट जीती थी। गठबंधन में रालोद ने 30 और सपा ने 28 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। पूरे चरण में आमतौर पर सपा-रालोद और भाजपा प्रत्याशी एक-दूसरे से मुकाबला करते नजर आए।
बसपा के उम्मीदवार चुनिंदा सीटों पर ही मुख्य मुकाबले में नजर आए। हालांकि, बसपा का कोर वोटर ज्यादातर हाथी की सवारी करता नजर आया, लेकिन कई जगह एक हिस्सा गठबंधन या भाजपा के पक्ष में झुका दिखा। सबसे ज्यादा नजर जाट मतदाताओं पर टिकी है। अधिकतर जिलों में उसका बड़ा हिस्सा गठबंधन के पक्ष में खड़ा दिखाई दिया। दूसरी पसंद भाजपा रही।
मेरठ जिले की बात करें तो सात सीटों पर भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार ही मुख्य लड़ाई में दिखे। शहर विधानसभा सीट पर सपा के विधायक रफीक अंसारी और भाजपा के कमलदत्त शर्मा मुकाबला करते नजर आए। यहां मतदाताओं का ध्रुवीकरण साफ दिखा। मेरठ कैंट में भाजपा के अमित अग्रवाल के साथ सपा-रालोद गठबंधन की प्रत्याशी मनीषा अहलावत मुख्य टक्कर में रहीं।
कैंट को भाजपा की सबसे मजबूत सीट माना जाता है। यहां भाजपा के मतदाताओं में उत्साह  दिखाई दिया। किठौर विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री और सपा-रालोद प्रत्याशी शाहिद मंजूर और भाजपा के मौजूदा विधायक सत्यवीर त्यागी के बीच कड़ी टक्कर दिखाई दी। यहां बसपा के केपी मावी सजातीय गुर्जर वोट बैंक को पूरी तरह नहीं संभाल पाए। दलित मतदाताओं में यहां ज्यादा उत्साह नहीं दिखा। इस सीट पर मत प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले कम रहा।
मेरठ दक्षिण सीट पर भाजपा के विधायक सोमेंद्र तोमर और सपा के आदिल चौधरी के बीच कड़ा मुकाबला है। यहां बसपा और कांग्रेस ने भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। भाजपा की संभावनाएं मुस्लिम मतों के बंटवारे पर टिकी हैं। सिवालखास सीट पर सपा-रालोद गठबंधन और भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है। यहां काफी हद तक जाट और मुस्लिम मतदाताओं की जुगलबंदी ने भाजपा की चुनौती बढ़ाई है। मनिंदर के पक्ष में जाटों के एक हिस्से के साथ ही भाजपा के परंपरागत वोटर और अतिपिछड़ी जातियां दिखीं।
मेरठ जिले की सरधना सीट पर भाजपा प्रत्याशी संगीत सोम और सपा के अतुल प्रधान के बीच कड़ा मुकाबला है। ठाकुर चौबीसी के 24 गांवों में संगीत सोम के लिए जबरदस्त रुझान दिखा तो कई गुर्जर और जाट बहुल गांवों में सपा के अतुल प्रधान की साइकिल दौड़ती नजर आई। रुझानों से लगा कि मुस्लिम मतों में यहां कांग्रेस के रिहानुद्दीन ज्यादा सेंध नहीं लगा सके। बसपा के संजीव धामा भी सजातीय जाट मतों को लामबंद नहीं कर पाए। सपा ने दलितों और सैनी बिरादरी में भी सेंध लगाई है। कुछ स्थानों पर दलित मत भाजपा के पक्ष में भी गए।
मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट के साथ यह अंधविश्वास जुड़ा है कि यहां से जिस दल का विधायक जीतता है, प्रदेश में उसकी सरकार बनती है। इस पर राज्यमंत्री व भाजपा प्रत्याशी दिनेश खटीक और सपा के योगेश वर्मा के बीच कड़ा मुकाबला रहा। योगेश वर्मा को जाट, जाटव और मुस्लिम मतदाताओं ने सहारा दिया, तो दिनेश खटीक को गुर्जरों में ज्यादा समर्थन मिलता दिखा। जाटव मतों में योगेश ने सेंध लगाई तो अन्य अनुसूचित जातियां खटीक की तरफ दिखीं। अति पिछड़ी जातियों का रुझान भी खटीक की तरफ रहा।
मुजफ्फऱनगर जिले के बुढ़ाना विधानसभा क्षेत्र में भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत का सिसौली गांव आता है। 2017 के चुनाव में भाजपा ने जिले की सभी छह सीटों पर कब्जा किया था, लेकिन इस बार सपा-रालोद गठबंधन का असर हर सीट पर दिखा। बुढ़ाना, मीरापुर और पुरकाजी में गठबंधन के उम्मीदवारों ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। माना जा रहा है इन सीटों पर हार-जीत का अंतर बढ़ सकता है। खतौली, चरथावल और सदर सीट पर भी दोनों दलों के बीच कांटे का मुकाबला दिख रहा है। यहां हार-जीत का अंतर काफी कम रहने की संभावना है। मीरापुर विधानसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी सालिम को मिलने वाले मतों पर सभी की नजरें टिकी हैं। पुरकाजी सुरक्षित सीट पर बसपा के सुरेंद्र पाल सिंह को मिलने वाले मत भी महत्वपूर्ण होंगे। देखने वाली बात यह होगी कि बसपा उम्मीदवार मुस्लिम मतों में कितनी सेंधमारी कर पाते हैं। मुजफ्फरनगर सदर सीट पर भितरघात हुआ होगा, तो भाजपा को नुकसान हो सकता है।
गन्ना बेल्ट में गन्ना मंत्री को कड़ी टक्कर
गन्ना बेल्ट शामली जिले की थानाभवन विधानसीट पर गन्ना मंत्री सुरेश राणा और रालोद-सपा गठबंधन के अशरफ अली खान के बीच कड़ी टक्कर दिखाई दी। इस सीट पर बसपा के जहीर मलिक के साथ ही एआईएमआईएम को मिलने वाले वोटों पर भी सभी की नजरें रहेंगी। शामली सीट पर भाजपा प्रत्याशी तेजेंद्र निर्वाल और रालोद-सपा गठबंधन के प्रसन्न चौधरी के बीच सीधा मुकाबला हुआ।
कैराना सीट पर ध्रुवीकरण की बयार बही। यहां मतदाता पलायन और भाईचारा के मुद्दे पर मतदान करते दिखे। कस्बे में सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी नाहिद हसन की तरफ मतदाताओं का रुझान रहा। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की मृगांका सिंह के पक्ष में माहौल दिखाई दिया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे के कारण यह सीट काफी चर्चा में रही।
बागपत में तीनों विधानसभा सीटों पर भाजपा व रालोद-सपा गठबंधन में सीधा मुकाबला रहा। इस जिले के छपरौली सीट पर सभी की निगाहें हैं। 1937 से यह सीट चौधरी चरण सिंह परिवार का अभेद गढ़ रही है। इस सीट पर भाजपा से चुनाव लड़े सहेंद्र सिंह रमाला 2017 में रालोद के टिकट पर विजयी रहे थे। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए थे। इसी वजह से कई गांवों में उनका विरोध भी हुआ। इस सीट पर पलड़ा रालोद-सपा गठबंधन का भारी माना जा रहा है, लेकिन देखना है कि छपरौली कोई इतिहास तो नहीं रचेगी। बागपत और बड़ौत सीट पर भी गठबंधन और भाजपा में सीधा मुकाबला रहा।
गाजियाबाद सीट पर प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री भाजपा के अतुल गर्ग को सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों से टक्कर मिली। पिछली बार इस सीट पर उन्होंने 71 हजार मतों से जीत हासिल की थी। उनके सामने बसपा से केके शुक्ला, कांग्रेस से सुशांत गोयल और सपा से विशाल वर्मा मैदान में हैं। केके शुक्ला भाजपा से बसपा में आए हैं। इस सीट पर शहरी मतदाता हैं। यहां  दलितों, मुस्लिमों और ब्राह्मण मतदाताओं पर शुक्ला की उम्मीदे हैं। मुस्लिम मतदाताओं में सपा और सुशांत की भी सेंध नजर आ रही है।
शिकारपुर में अनिल शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर
बुलंदशहर जिले की शिकारपुर सीट पर राज्यमंत्री और भाजपा उम्मीदवार अनिल शर्मा कड़े मुकाबले में फंसे नजर आ रहे हैं। उनके सामने रालोद से पूर्व मंत्री प्रो. किरनपाल यहां जाटों और मुस्लिमों की जुगलबंदी के दम पर मजबूती से लड़ते नजर आए। यहां बसपा के रफीक फड्डा और कांग्रेस के जियाउर्रहमान के बीच मुस्लिम मतों के बंटवारे के प्रतिशत पर ही अनिल शर्मा को उम्मीदें टिकी हैं।
आगरा जिले की सभी 9 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों के साथ सपा और बसपा प्रत्याशियों का कड़ा मुकाबला रहा। आगरा उत्तर से भाजपा विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल और सपा प्रत्याशी ज्ञानेंद्र गौतम में मुकाबला है, तो आगरा दक्षिण से भाजपा के दो बार के विधायक योगेंद्र उपाध्याय को बसपा प्रत्याशी रवि भारद्वाज से कड़ी चुनौती मिली है। आगरा छावनी में प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री डॉ. जीएस धर्मेश की प्रतिष्ठा दांव पर है। उन्हें सपा प्रत्याशी कुंवर चंद से टक्कर मिली है। मुस्लिम मतदाताओं में आगरा दक्षिण  और छावनी सीट पर बंटवारा हुआ, वहीं दलित वोटबैंक में भी सेंधमारी हुई है, जिससे बसपा को नुकसान हुआ।
आगरा ग्रामीण में पूर्व राज्यपाल भाजपा प्रत्याशी बेबीरानी मौर्य और सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी महेश जाटव में मुकाबला है।  एत्मादपुर विधानसभा में दो बार के विधायक रहे भाजपा प्रत्याशी डॉ. धर्मपाल सिंह और बसपा प्रत्याशी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राकेश बघेल के बीच बेहद कांटे की टक्कर है। फतेहपुर सीकरी में पूर्व मंत्री और सांसद रहे भाजपा प्रत्याशी चौ. बाबूलाल और सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी बृजेश चाहर के बीच कड़ी लड़ाई है।
खैरागढ़ में भाजपा प्रत्याशी और दो बार के विधायक रहे भगवान सिंह कुशवाह और अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस प्रत्याशी रामनाथ सिकरवार के बीच कांटे का मुकाबला देखा गया। बसपा प्रत्याशी गंगाधर कुशवाह यहां कुछ ब्लॉक में त्रिकोणीय संघर्ष बनाते दिखे हैं। फतेहाबाद विधानसभा को फतह करने के लिए तीन बार के पूर्व विधायक छोटेलाल वर्मा और सपा प्रत्याशी रूपाली दीक्षित के बीच टक्कर रही। यही हाल बाह का रहा, जहां राजघराने की बहू और भाजपा विधायक रानी पक्षालिका सिंह को सपा गठबंधन प्रत्याशी मधुसूदन शर्मा ने चुनौती दी। ब्राह्मण वोटों का बाह में बंटवारा हुआ। बाह और फतेहाबाद में बसपा प्रत्याशी का बूथ मैनेजमेंट असरदार नहीं रहा, जिसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है। 
अलीगढ़ की सातों सीटों पर कड़ा मुकाबला दिखा। कुछ सीटों पर आमने-सामने की टक्कर दिखाई दी है तो कहीं मुकाबला त्रिकोणीय दिखा। अतरौली सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कल्याण सिंह के पौत्र प्रदेश में मंत्री संदीप सिंह को जातीय समीकरणों से सपा के पूर्व विधायक वीरेश यादव ने कड़ी टक्कर दी है।
 रालोद चुनौती देती दिख रही है। वहीं छर्रा व शहर सीट पर भाजपा-सपा में सीधी लड़ाई होती दिखी, जबकि कोल पर भाजपा, सपा व कांग्रेस में लड़ाई दिखी है। जिले के जाटलैंड वाली पहली इगलास सीट पर भाजपा को रालोद ने कड़ी टक्कर दी है, जबकि दूसरी खैर पर भाजपा को रालोद व बसपा ने कड़ी चुनौती पेश की है।
मथुरा जिले की छाता सीट पर कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी को सपा-रालोद गठबंधन से कड़ी चुनौती मिली। गठबंधन ने उनके सामने पूर्व विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह को उम्मीदवार बनाया। इस तरह मथुरा सीट पर काबीना मंत्री श्रीकांत शर्मा को चुनौती मिल रही है।

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