गरीबों पर भारी निजी डॉक्टरों की मोटी फीस, स्वास्थ्य विभाग बना मूकदर्शक


 500–800 रुपये की फीस ने दो वक्त की रोटी कमाने वालों का जीना किया दुश्वार, सरकारी अस्पतालों की बदहाली ने बढ़ाई जनता की मजबूरी


जौनपुर।जिले में प्राइवेट डॉक्टरों की मनमानी फीस गरीबों की जेब पर भारी पड़ रही है। सरकारी अस्पतालों में इलाज ढंग से न मिलने और दवाएं बाहर से लिखे जाने के कारण आम जनता की मजबूरी बढ़ जाती है और वह प्राइवेट क्लीनिकों का रुख करती है। लेकिन यहां फीस इतनी अधिक है कि मरीज इलाज से पहले ही परेशान हो जाते हैं।

जानकारी के अनुसार जिले में प्राइवेट चिकित्सक सामान्य चेकअप के लिए ही 500 से 800 रुपये तक फीस वसूल रहे हैं। इमरजेंसी की स्थिति में यह रकम और बढ़ जाती है। वहीं दवाइयों का खर्च अलग से उठाना पड़ता है, जिस पर मोटा कमीशन जुड़ा होने की शिकायतें भी सामने आई हैं।

कोरोना महामारी के बाद से बेरोजगारी की मार झेल रही गरीब जनता, जिनकी रोज़ की आय महज 200–300 रुपये तक है, ऐसे हालात में डॉक्टरों की मोटी फीस वहन करने में असमर्थ है। रिक्शा चलाकर, बीड़ी बनाकर या दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालने वाले परिवारों के लिए यह स्थिति दोहरी मार साबित हो रही है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों का हाल बदहाल है। नाम भर के लिए चल रहे इन अस्पतालों में न तो गुणवत्तापूर्ण इलाज मिल रहा है और न ही दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। ऐसे में मजबूरी में मरीज निजी डॉक्टरों के पास जाते हैं, जहां फीस और दवाइयों का बोझ उन्हें कर्ज और कंगाली की ओर धकेल रहा है।

मरीजों का आरोप है कि निजी डॉक्टर नकद भुगतान ही प्राथमिकता देते हैं, जिससे उनकी वास्तविक आय का हिसाब-किताब सरकार और स्वास्थ्य विभाग तक नहीं पहुंच पाता। जानकारों का कहना है कि यदि भुगतान की व्यवस्था ऑनलाइन कर दी जाए तो इन डॉक्टरों की वास्तविक कमाई पर नियंत्रण रखना संभव होगा।

सवाल यह है कि स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन इस गंभीर समस्या पर आंखें क्यों मूंदे हुए हैं। विभागीय छापेमारी की कार्रवाई भले कभी-कभी होती हो, लेकिन उसके बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है।

स्थानीय नागरिकों ने जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा से अपेक्षा जताई है कि वे इस मुद्दे पर संज्ञान लें और सीएमओ को सख्त कार्रवाई के निर्देश दें। साथ ही प्राइवेट डॉक्टरों की फीस पर नियंत्रण और गरीब जनता को राहत दिलाने की ठोस पहल करें।

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