शिष्या से दुष्कर्म के आरोप में फंसे स्वामी चिन्मयानंद पर आया कोर्ट का फैसला, आरोप से दोषमुक्त हुए बरी

शिष्या से दुष्कर्म के 12 साल पुराने मुकदमे में जौनपुर के पूर्व सांसद एवं पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भारत सरकार स्वामी चिन्मयानंद को एमपीएमएलए कोर्ट ने दोषमुक्त करार देते हुए बरी कर दिया। बृहस्पतिवार को कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने बताया कि स्वामी चिन्मयानंद पर साजिशन झूठे आरोप लगाए गए थे। 
30 नवंबर 2011 को पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ उनकी शिष्या ने शाहजहांपुर स्थित चौक कोतवाली में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप था कि चिन्मयानंद ने अपने कर्मचारियों की मदद से शिष्या को मुमुक्षु आश्रम में बंधक बनाकर कई बार दुष्कर्म किया। पुलिस ने विवेचना के बाद चिन्मयानंद के खिलाफ आरोपपत्र अदालत भेजा। 
भाजपा की सरकार बनने पर 2018 में मुकदमा वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसकी जानकारी होने पर पीड़िता ने एतराज जताया तो अदालत ने लोकहित से जुड़ा मामला न मानते हुए प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया था। चिन्मयानंद के कोर्ट में हाजिर न होने पर 30 नवंबर 2022 को एमपी-एमएलए कोर्ट ने गैरजमानती वारंट जारी किया था। हाईकोर्ट से उन्हें अंतरिम जमानत मिली थी। इसके बाद चिन्मयानंद एमपी-एमएलए कोर्ट में हाजिर हुए थे। 
चिन्मयानंद के हाजिर होने के बाद अदालती प्रक्रिया में तेजी आई। बृहस्पतिवार को एमपी-एमएलए कोर्ट/अपर जिला जज तृतीय अहसान हुसैन ने मुकदमे का फैसला सुनाया। अदालत ने स्वामी चिन्मयानंद को दोषी ठहराने के लिए पेश किए गए साक्ष्यों को पर्याप्त नहीं माना। अदालत ने चिन्मयानंद को दोषमुक्त करते हुए बरी कर दिया। 
अदालत का फैसला आने पर चिन्मयानंद ने राहत की सांस ली। हालांकि अदालत से निकलने के बाद वह मीडिया से बात किए बिना चले गए। उनके वकील फिरोज हसन खां ने बताया कि अभियोजन पक्ष की ओर से छह गवाह पेश किए गए। इनमें मेडिकल करने वालीं डॉ. सईद फातिमा, एफआईआर लेखक खुर्शीद अहमद, रेडियोलॉजिस्ट डॉ. एमपी गंगवार, बीपी गौतम और विवेचक मुकदमा इंस्पेक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह शामिल थे। 
बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता फिरोज हसन खां ने सभी गवाहों से जिरह की। जिरह की प्रक्रिया पूरी होने के बाद विशेष लोक अभियोजक नीलिमा सक्सेना ने और बचाव पक्ष से अधिवक्ता फिरोज हसन खां और मनेंद्र सिंह ने अदालत में अपने तर्क पेश किए। इसके बाद न्यायालय ने अपना निर्णय सुनाया।

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