सज्जनता की मूर्ति एवं सरलता के अवतार थे स्व. उमानाथ सिंह, 26 वीं पुण्यतिथि पर विशेष


जौनपुर। भावों की आरती और आंसू का चंदन है, मां के सगुण सपूत, तुम्हारी स्मृति का वंदन है। तुम आये तो तुमको पाकर पिता पुनीत हुए थे। माता के वत्सल अंचल के तुम नव गीत हुए थे। ऐसा लगा रामसूरत सिंह का गृह नंदन है। मां के सगुण सपूत, तुम्हारी स्मृति का वंदन है।। अमर शहीद पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह पर लिखी गयी साहित्य वाचस्पति डॉ. श्रीपाल सिंह की क्षेम की यह कविता आज भी प्रासंगिक है। देवदुर्लभ सुंदर देहयष्टि, गौरवर्ण, धनी काली मूँछों के भीतर सदैव मुस्काराता चेहरा, सहज श्वेत कुर्ता-धोती का परिधान, अपने ओलंदगंज के निवास के बरामदें में चौकी पर बैठे उमानाथ, सहयोगियों-समर्थकों की भीड़ से घिरे रहते थे। मकान में कभी ठा. रामलगन सिंह रहते थे और उनके ही यहां प्रदेश के प्रतिष्ठित कांग्रेस नेता ठा. हरगोविंद सिंह भी रहते थे। उमानाथ सिंह की चौखट आम आदमी के लिए सहज चौखट बन गयी थी जहां गरीब, दुखी आसानी से अपनी फरियाद सुनाने पहुंच जाता था और बाहरी बरामदें में चौकी पर बैठे ठा. उमानाथ सबका हालचाल पूछते और उनकी सहायता करते रहे। घर के अच्छे भले समृद्ध व्यक्ति और शहर में भी कई निजी मकानों के मालिक पर इसका घमंड उन्हें छूकर भी नहीं था। यह गोमती तट वाला मकान उनका निजी मकान है जबकि ठा. रामलगन सिंह इसमें उनके किराएदार थे। पर ठा. रामलगन सिंह की ठसक कभी उमानाथ में नहीं देखी गई। वे सज्जनता की मूर्ति, सरलता के अवतार और सबके लिए सहज और सुलभ थे।
बताते चलें कि स्व. सिंह के गुजरे हुए 26 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी उनकी प्रेरणा परिवार वालों व अन्य लोगों को मिलती रहती है। त्याग, परोपकार, समर्पण, शालीनता, सादगी, विनम्रता, धैर्य सब कुछ उनके व्यक्तित्व में समाहित था। उनका मानना था कि सत्य की डगर कठिन होती है लेकिन अंतिम में परिणाम सत्य के पक्ष में ही जाता है। वह एक महान समाज सेवी थे। राजनीतिक क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान थी। वह गरीबों व असहायों के हितों के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे। यहीं कारण है कि उनके गुजरे 26 वर्ष हो हो चुके हैं लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में है। उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से सीख लेने की जरूरत है।
उनके अनुज भ्राता व टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक अशोक सिंह भी अपने बड़े भाई उमानाथ सिंह के नाम से शिक्षण संस्थानों को स्थापित किया वह भी अपने आप में एक मिसाल है। ठाकुर अशोक सिंह के भातृत्व प्रेम से समाज के अन्य लोगों को सीख लेने की जरुरत है। स्व. उमानाथ सिंह ने अपने परिवार में जो संस्कार का बीज बोया वह आज भी विद्यमान है। उनका संस्कार ही उनके परिवार का धरोहर है। उसी संस्कार के रास्ते पर चल कर पुत्र व भतीजे समाज सेवा में लगे हुए हैं। ज्ञातव्य हो कि उमानाथ सिंह स्मृति सेवा संस्थान द्वारा हर साल की तरह इस साल भी 13 सितम्बर को  26वीं पुण्य तिथि मनायी जाएगी।

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