जौनपुर रियासत के ग्यारहवें नरेश राजा स्व. यादवेन्द्र दत्त एक अद्भुत ब्यक्तित्व, पुण्य तिथि आज - डा. अखिलेश्वर शुक्ला


 जौनपुर । वर्तमान गद्दीनशींन राजा अवनीन्द्र दत्त दूबे  के पिता जौनपुर रियासत के ग्यारहवें नरेश राजा स्व. यादवेन्द्र दत्त दूबे  का जन्म बिक्रमी सम्बत १९७५ के मार्गशीर्ष (अगहन) शुक्लपक्ष चतुर्थी ( सन-1918) को जौनपुर राजमहल में  हुआ था। पिता श्री कृष्ण दत के निर्देश पर महिनों खुशियां मनाई गई और साधु,संत, फकीरों , गरिबों-मजलुमों को खैरात बांटे गए थे। राजा साहब का आदेश था--कोई खाली हाथ वापस नहीं जाना चाहिए। लालन - पालन राजसी ठाठ बाट , संस्कारों, परम्पराओं के साथ हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काल्विन तालुकदार्स कालेज लखनऊ, उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं आक्सफोर्ड  से प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है। पिता राजा श्री कृष्ण दत दूबे  के शरीर छोड़ने के पश्चात - 24-02-1945 को पारम्परिक विधि विधान से आपका राज्याभिषेक हुआ था।                                                      स्वतंत्र भारत में होने वाले प्रथम चुनाव में सक्रियता ने आपको एक कर्मठ, जुझारू, लोकप्रिय नेता एवं ओजस्वी वक्ता के रूप में ख्याति प्राप्त कराया। बहुत सारे राजा-महराजा चुनाव लड़े और विजयी भी हुए। लेकिन आमजनों से कम जनसम्पर्क होने के कारण ज्यादा समय तक राजनीति में नहीं रह पाये। जौनपुर रियासत के ग्यारहवें नरेश राजा  यादवेन्द्र दत्त दूबे  इसके अपवाद रहे। राजनीति इन्हे वंशपरम्परा में मिली थी। यही कारण है कि चार बार बिधायक और दो बार सांसद के रूप में जौनपुर का प्रतिनिधित्व किए। जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, संसद के  वैदेशिक समिति, सुरक्षा समिति सदस्य के साथ ही अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल में अनेक देशों का भ्रमण करने के दायित्व का निर्वहन किया।                                                                राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक गुरु गोलवलकर के सन्निकट थे। आप विद्वान थे, बुद्धिमान थे, मेधावी थे, बच्चों जैसा भोलापन और योगियों जैसा चित्तवृत्ति थी। अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत के साथ साथ विज्ञान के विषय एवं ज्योतिष में भी उनकी जानकारी गज़ब की थी। जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे राजा साहब। चुनाव के दौरान आपके लोकप्रियता एवं चुनावी फिज़ा की चर्चा बीबीसी से प्रसारित होता था। एक बार चुनावी रैली की चर्चा करते हुए बीबीसी ने कहा कि-  राजा जौनपुर की रैली में ऐसा लगता है कि --पुरा जनसैलाब उमड़ पड़ा है। जौनपुर की सड़कों पर तील रखने की जगह नहीं है।। इसी प्रकार एक बार राजा साहब के ब्यक्तित्व की चर्चा करते हुए बीबीसी ने कहा था कि --राजा यादवेन्द्र दत्त एवं डॉ राममनोहर लोहिया के विरूद्ध कोई  कांग्रेसी चुनाव लडने को तैयार नहीं है। यह उस समय की बात है जब पुरा भारत कांग्रेसमय था। यही कारण था कि राजा साहब की लोकप्रियता को देखते हुए पं दीनदयाल उपाध्याय को जौनपुर से चुनाव लड़ाया गया। लेकिन वे दुर्भाग्यवश जीत नहीं सके।                
राजा साहब एक कुशल शिकारी भी थे। अपने जंगल यात्राओं एवं घटनाओं को आपने लिपिबद्ध भी किया है। वे सब अंग्रेज़ी में थे। जिसका  रूपांतरण हिंदी में कराया। आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई  हैं।पहली पुस्तक"वन पशुओं के बीच"हिन्दी प्रचारक वाले वेरीजी वाराणसी ने छापी थी। उसके बाद "आखेट"को हिंदी एकेडमी उत्तर प्रदेश से पुरस्कृत भी किया गया।                           
राजा साहब खाने-खिलाने के बड़े सौकिन थे। खिलाने के बहाने ढूंढा करते थे। हवेली में साहित्यकारों से लेकर राजनीतिज्ञों का जमावड़ा होता था। मैथिली शरण गुप्त, डॉ  हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य महावीर प्रसाद,श्रीपाल सिंह क्षेम, डॉ चंद्रेश जी, डॉ देवेन्द्र जी आदि यहां से जुड़े हुए थे। तथा समय-समय पर सहायता, प्रोत्साहन प्राप्त करते थे।  राजनीतिज्ञों में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई, चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई , भानुप्रताप शुक्ल,बाबू जगजीवन राम, लालकृष्ण आडवानी,कल्याण सिंह ,स्व. उमानाथ सिंह सहित लम्बी श्रृंखला है। स्वामी परमहंस रामचंद्र दास जी,अवधुत भगवान राम, देवरहवा बाबा, से राजा साहब आत्मीय लगाव रखते थे।                                    बहुमुखी प्रतिभा से सुसज्जित राजा साहब जौनपुर ने अंकगणित के सर्वोच्च अंक (09) को अपनाते हुए वाराणसी के एक निजी अस्पताल में दिनांक:-  09-09-99 को प्रात: 09 बजे अपना शरीर त्याग दिए। वहां से जौनपुर अंतिम दर्शन के लिए लाये गये। हवेली से रामघाट तक जो जन सैलाव चमड़ा वह ना भूतो ना भविष्यति ऐसे थे हमारे जौनपुर के लोकप्रिय राजा साहब          आज़ हम सब हृदय से सादर नमन बंदन सहित श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 
                                                                  

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