रहमतों, बरकतों व इबादतों का महीना है रमजान - आरिफ हबीब


जौनपुर। पवित्र माह रमजान के पावन अवसर पर माहे रमजान एवं रोजे की महत्ता व विशेषताओं का वर्णन करते हुए मरकज़ी सीरत कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष ,मुस्लिम यूथ ऑर्गेनाइजेशन व राष्ट्रीय सद्भावना मंच के अध्यक्ष आरिफ हबीब ने कहा कि रोजा उन पांच बुनियादी अरकानों में से एक है जिसे व्यवहार में लाने वाला ही सच्चा मुसलमान है।
 30 दिवसीय रोजा तीन अशरों में विभाजित होता है।
पहला दस दिन का अशरा रहमतों का, दूसरा दस दिन बरकतों का व तीसरा दस दिन का अशरा जहन्नम की आग से निजात का होता है। 
रमज़ान में इबादतो का सबाब ज़्यादा मिलता है, रोजे से संयम सदाचार की भावना जागृत होती है रोजे से चारित्रिक नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास व हृदय एवं आत्मा का शुद्धीकरण भी होता है। रोजे में एक नेकी 70 नेकियों के बराबर होती है।
आरिफ हबीब ने आगे कहाकि इस पवित्र माह का महत्व इसलिए भी है कि इसी महीने में कुराने पाक नाजिल हुई जिससे हमें एक सर्वोत्तम मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि उनके द्वारा हमें कुरान ए पाक जैसी अज़ीम किताब मिली।
 हमारे पास एक ऐसी किताब है।।
 हर सवाल का जिसमे जवाब है।।
 कुरान हमें सर्वोत्तम मार्ग दिखाता है जिससे हमें एक अच्छी जिंदगी जीने का अवसर प्राप्त हुआ।
पवित्र माह रमजान में  पांच वक्त की नमाज के अतिरिक्त नफील नमाज़, तिलावते कलाम ए पाक एवं अन्य इबादतों के माध्यम से अल्लाह को राजी करने में बंदे मशगूल रहते हैं।
श्री हबीब ने कहा कि रोज़ा  तकवा यानी परहेजगारी एवं अल्लाह के हुक्म का पालन करना है।
तीस दिवसीय रोज़ा असल में पूरी ज़िन्दगी के लिए एक प्रशिक्षण मात्र है।
आरिफ हबीब ने कहाकी आखरी 10 दिन के अशरे में इबादतों के क्रम में शबे कद्र व एतकाफ के जरिए अल्लाह की इबादत करते हैं।
एतकाफ में क्षेत्र या बस्ती,इलाके का एक भी व्यक्ति शामिल हुआ तो पूरे इलाके की शमूलियत हो जाती है। रोज़ा करुणा दया संयम सदाचार एवं अनुशासन का प्रतीक है।

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