स्कन्द पुराण में है त्रिलोचन शिव मन्दिर का जिक्र यहाँ के शिवलिंग जैसा कहीं और नहीं, हर सोमवार को लगती है हजारों भक्तो की भीड़



 जौनपुर।  जनपद मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर जौनपुर वाराणसी मार्ग पर स्थित त्रिलोचन बाजार के पूरब में बना त्रिलोचन शिव मन्दिर एतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से अत्यंत ही अद्भुत एवं अद्वितीय है यहाँ पर स्वयं से ही स्थापित भगवान शिव की महिमा के चलते प्रत्येक सोमवार को दर्शनार्थियों का हुजूम जुटता है । सावन मास में तो यहाँ पर दिन रात कावड़ियो का मेला लगता रहा है लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते कांवर यात्रा पर प्रतिबंध लगाने से शिव जी के भक्त इस तीर्थ स्थली पर पहुंचने से परहेज किये हैं लेकिन अपने घरों में भगवान शिव की आराधना जरूर कर रहे हैं। ऐसा शिव लिंग प्रदेश के किसी भी मन्दिर में नहीं मिल सकता है। 
यहाँ बतादे कि इस एतिहासिक एवं परम शक्ति शाली शिव मन्दिर का जिक्र स्कन्द पुराण के पृष्ठ संख्या 674 पर अंकित है। जिसमें स्पष्ट उल्लिखित है कि यहाँ पर मन्दिर के अन्दर का शिव लिंग कहीं से लाया नहीं गया है बल्कि स्वयं शंकर भगवान सात पाताल से निकल कर यहाँ पर विराजमान है । यहाँ पर नित्य भगवान शिव की पूजा अर्चना करने वाले पन्डा बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले की बात है कि यहाँ पर एक गाय प्रतिदिन आती थी और उसके थन से अपने आप दूध की धारा निकलती थी। आशंका होने पर यहाँ के लोगों ने मन्दिर गर्भ गृह स्थल पर काफी गहराई तक खुदाई किया तो नीचे भगवान शिव का अद्भुत एवं अद्वितीय लिंग मिला इसके बाद ग्रामीणों ने मिल कर शिव जी के मन्दिर का निर्माण कराया और त्रिलोचन महादेव के नाम से मन्दिर का नाम करण कर दिया। 
मन्दिर के पन्डा ने यह भी जानकारी दिया है कि इस मन्दिर के निर्माण में गौड़ समाज के लोगों ने अहम भूमिका निभाया था। ऐसा कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले शिव जी के लिंग पर किसी भक्त ने चांदी का सर्प चढ़ाया था जिसे किसी ने चुरा लिया था लगभग पांच माह बीतने के बाद सर्प चुराने वाले पागल होने लगे और सर्प भगवान के मन्दिर में वापस लौटाया, एक बार और चोरों ने भगवान का घन्टा चुरा लिया त्रिलोचन स्टेशन तक ले गये वहां पर जमीन पर रखा फिर घन्टा नहीं उठा सके और छोड़ कर भाग निकले घन्टा फिर मन्दिर में स्थापित हो गया। यहाँ पर प्रतिदिन ग्रामीण जनो एवं पन्डाओ द्वारा रात्रि में भगवान पूजा आरती करने के बाद कपाट बन्द किया जाता है तो प्रात: काल भोर में ही आरती पूजन के बाद ही कपाट आम जनता के दर्शन हेतु खोल दिया जाता है। यह प्रक्रिया सैकड़ों साल से बदस्तूर चली आ रही है। 
इस ऐतिहासिक मन्दिर को लेकर एक बार लहंगपुर और रेहटी नेवादा के लोग आपस में टकराव कर लिए थे विवाद गहरा हो चला था फिर ग्रामीण सभी मिलकर भगवान शिव के दरबार में पहुंच कर उन्ही से प्रार्थना किया कि बताये कि किसी गांव में स्थापित है तो दूसरे दिन मन्दिर रेहटी नेवादा गांव की ओर झुका मिला तभी से मान लिया गया है कि भगवान शिव जी का यह ऐतिहासिक मन्दिर रेहटी नेवादा गांव में है। इसके साथ ही पन्डा का दावा है कि शिव लिंग स्वयं से प्रति वर्ष बढ़ता है। यहाँ पर भगवान भोलेनाथ से पूरे श्रद्धा भाव मांगे गये वरदान को भगवान पूरा करते हैं। 
इस ऐतिहासिक मन्दिर के पास बने पोखरे को पिपलानी कुण्ड के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस कुण्ड में स्नान करने वालों के शरीर का चर्म रोग ठीक हो जाता है । बतादे इस मन्दिर पर प्रत्येक सोमवार को 10 से 15 हजार की संख्या में भक्त जनों का आना जाना लगा रहता है। सावन मास में तो यहाँ पर लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते कांवर यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और भक्त यहाँ नहीं आ रहे हैं। 
वर्तमान में यहाँ के सुन्दरी करण और स्वच्छता का दायित्व पर्यटक विभाग को दिया गया है जो यहाँ के पोखरा से लगायत मन्दिर तक को संवारने में लगा हुआ है। जन मत यह भी है कि यह स्थल शक्तिशाली होने के साथ ही रमणीय और पर्यटन के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है। हलांकि वाराणसी आने वाले कुछ पर्यटक यहाँ आते हैं। यदि सरकारी स्तर पर पर्यटकों की सुविधा की व्यवस्था करायी जाये तो देश विदेश के पर्यटकों का आना जाना शुरू हो सकता है। 
कपिल देव मौर्य जौनपुर 

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