संकट काल में घरों में दुबकने वाले चिकित्सकों को कोरोना वारियर्स का सम्मान जिले में चर्चा का बिषय



जौनपुर। एक मुहावरा जिले के प्राइवेट चिकित्सकों पर सटीक बैठता है राम नाम में आलसी, भोजन में हुंसियार। बीते 3 जुलाई बुधवार को डाक्टर्स डे  पर एक समाज सेवी संस्था ने जिले के प्राइवेट चिकित्सकों को कोरोना वारियर्स के सम्मान से नवाजा और प्राइवेट चिकित्सकों ने स्वीकार भी किया। प्राइवेट चिकित्सकों ने कोरोना संक्रमण काल में कितना कोरोना से लड़े यह किसी से छिपा नहीं है  पूरा जनपद जानता है जब जनता के सेवा की बात आई तो ये चिकित्सक कहाँ थे।  सचमुच जिन सरकारी चिकित्सकों ने अपने जान की बाजी लगाई उनको किसी भी संस्था ने पूँछा तक नहीं सम्मान तो दूर की कौड़ी है। 
यहाँ बतादे कि कोरोना संक्रमण काल में जनपद के लगभग सभी प्राइवेट चिकित्सक अपनी क्लीनिको में ताला बंद कर गायब हो गये थे तब तक गायब रहे जब तक पूरी तरह से लाक डाऊन रहा। हां लाक डाऊन खत्म होने के बाद जब उपचार के नाम पर जनता के शोषण की बेला आयी तो बहुत पर्दे के पीछे से धनोपार्जन का खेल शुरू कर दिये हैं। आज भी कुछ प्राइवेट चिकित्सक है जो तमाम पर्दे के पीछे बैठ कर अपना अस्पताल चला रहे है। संस्था ने डाक्टर्स डे पर किये गये अपने कार्यक्रम विज्ञप्ति जारी किया है जिसमें प्राइवेट चिकित्सकों को कोरोना वारियर्स के रूप में सम्मानित करने का जिक्र किया गया है। 
यहाँ सवाल इस बात का उठता है कि जब प्राइवेट चिकित्सक जब कोरोना संक्रमण काल में अपने घरों में दुबक गये थे तो कोरोना वारियर्स कैसे बन गए। जब जनता के सेवा की बेला थी तो गायब जब सम्मान लेने की बारी आई तो आगे आ गये है न 'राम नाम में आलसी,  भोजन में हुंसियार ",  हलांकि सच खबरें ने लाक डाऊन के दौरान प्राइवेट चिकित्सकों के बन्द अस्पतालों की फोटो के साथ जनपद वासियों को सच बताया था। जिसे लेकर समाज में खासी आलोचना भी हुई थी। हलांकि कि प्रशस्ति पत्र देने वाली संस्था ने कहा कि कोरोना संक्रमण काल में प्राइवेट चिकित्सकों ने अपना अतुलनीय योगदान जनपद वासियों को बचाने में किया है इस लिए यह सम्मान पत्र दिया गया है। 
हाँ सच यह है कि सरकारी चिकित्सकों ने अपने जान की बाजी लगा कर दिन रात कोरोना पाजिटिव मरीजों की सेवा किया कई  चिकित्सक भी संक्रमित हो गये लेकिन अपने जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटे संस्था सरकारी चिकित्सकों को कोरोना वारियर्स के सम्मान से नवाजती तो सार्थक माना जाता लेकिन यहाँ सवाल खड़ा होता है कि कि संस्था के लोगों ने किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिए उनको सम्मानित किया जिसका कोई योगदान नहीं था। यहां यह भी बता दे कि प्राइवेट चिकित्सक कोरोना काल में जहां शारीरिक रूप से घरों में दुबक थे वहीं इनकी युनियन अथवा व्यक्तिगत रूप से आर्थिक रूप से सरकार अथवा समाज का कोई सहयोग नहीं किया फिर भी कोरोना वारियर्स बन गये बधाई हो।    




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