क्या सरकार पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के फैसले को बदलने जा रही है, जाने क्या है पूरा मामला



बजट 2021 में  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की. इसके अलावा एक इंश्योरेंस कंपनी का भी निजीकरण किया जाएगा. बजट घोषणा के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने ब्लूमबर्ग के साथ इंटरव्यू में सरकारी बैंकों के निजीकरण के फैसले का स्वागत किया. उन्होकहा कि ये तो महज शुरुआत है. आने वाले दिनों में देश में केवल चार से उससे भी कम पब्लिक सेक्टर बैंक होंगे.
केवी सुब्रमण्यम ने कहा कि भविष्य में बैंकिंग स्ट्रैटिजिक सेक्टर में शामिल हो जाएगा और देश में केवल 4 पब्लिक सेक्टर बैंक रहेंगे. इसके अलावा जितने भी बैंक हैं, उनका निजीकरण कर दिया जाएगा. अभी देश में 12 पब्लिक सेक्टर बैंक हैं. 2 बैंकों के निजीकरण की घोषणा के बाद यह घटकर 10 हो जाएगा. इतिहास पर नजर डालें तो 19 जुलाई 1969 को देश की तत्कालिन प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री इंदिरा गांधी ने 14 बड़े प्राइवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. इस फैसले से 80 फीसदी बैंकिंग एसेट पर सरकार का नियंत्रण हो गया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के इतिहास के तीसरे वॉल्यूम में राष्ट्रीयकरण के फैसले को 1991 के उदारीकरण के फैसले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रभावी बताया गया.
नरेंद्र मोदी पहली बार 2014 में देश के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए. यह उनका दूसरा कार्यकाल है और बैंकों के निजीकरण की दिशा में सरकार तेजी से आगे बढ़ रही है. 2017 तक देश में कुल 27 सरकारी बैंक थे. पहली बार 2017 में पांच असोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में मर्जर किया गया था. इसके अलावा विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय कर दिया गया. यह फैसला मोदी सरकार ने अप्रैल 2017 में लिया था. लेकिन यहां बड़ा सवाल है कि सरकारी बैंकों का मर्जर या निजीकरण कितना सफल हो सकेगा. एक तरफ इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके बैंकिंग सेक्टर के लिए नए दरवाजे खोले. वहीं बीते कुछ सालों में जो बैंकिंग सेक्टर की हालत हुई है वो कुछ और ही इशारा कर रही है.
सरकार ने फिर 10 बैंकों के मर्जर की घोषणा की. इसके तहत छह बैंकों का अस्तित्व चार बैंकों में समेट दिया गया, जिसके बाद देश में 12 सरकारी बैंक रह गए. पिछले साल ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में मर्जर किया गया. कैनरा बैंक में सिंडिकेट बैंक का मर्जर किया गया. इलाहाबाद बैंक का विलय इंडियन बैंक में किया गया. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और आंध्रा बैंक का कॉर्पोरेशन बैंक में विलय किया गया.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला वैसे ही नहीं लिया गया था. 1969 से पहले देश गरीब था और यह शिकायत थी कि प्राइवेट बैंक कॉर्पोरेट को तो लोन देता है लेकिन खेती के लिए वह लोन नहीं देता है. ब्लूमबर्ग की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, 1951 तक बैंकिंग लोन में कृषि की हिस्सेदारी महज 2 फीसदी थी. यह हाल 1967 तक रहा. वहीं कॉर्पोरेट लेंडिंग का शेयर 34 फीसदी से बढ़कर 64.3 फीसदी पर पहुंच गया. ऐसे में जब राष्ट्रीयकरण का फैसला लिया गया तो उसके बाद कृषि के लिए लोन में तेजी आई. आज की परिस्थिति कुछ और है. अगर आने वाले दिनों में सरकारी बैंकों की संख्या घटकर 4 रह जाएगी तो इसके क्या-क्या नुकसान होंगे, इसका अंदाजा इतिहास के घटनाक्रम से आसानी से पता लगाया जा सकता है.

Comments

Popular posts from this blog

पूर्व सांसद धनंजय सिंह के प्राइवेट गनर को गोली मारकर हत्या इलाके में कोहराम पुलिस छानबीन में जुटी

सपा ने जारी किया सात लोकसभा के लिए प्रत्याशियों की सूची,जौनपुर से मौर्य समाज पर दांव,बाबू सिंह कुशवाहा प्रत्याशी घोषित देखे सूची

लोकसभा चुनाव के लिए बसपा की चौथी सूची जारी, जानें किसे कहां से लड़ा रही है पार्टी, देखे सूची