अखिलेश-शिवपाल होंगे साथ: कोरोना बना मिलन में बाधा, जल्द करेंगे एलान






लखनऊ: दो साल पहले प्रदेश की समाजवादी राजनीति में आए भूचाल की वजह से चाचा-भतीजे ने भले ही अलग राह थाम ली थी। लेकिन बीते दिनों में जैसे गंगा का पानी अपने साथ बहुत–कुछ बहा ले गया उसी तरह चाचा-भतीजे भी अपने गिले-शिकवे भूलकर एक डगर पर चलने को राजी हो गए हैं। कोरोना संक्रमण से उत्‍पन्‍न स्थितियों की वजह से राजनीतिक मिलन में देरी हो रही है। लेकिन सब कुछ ठीक रहने पर साल के आखिरी महीने तक बडी कार्यकर्ता रैली के साथ ही दोनों दलों की डगर एक हो जाएगी।
दो साल पहले जुलाई–अगस्‍त के महीने में ही समाजवादियों ने चाचा- भतीजे के बीच तल्‍खी बढती देखी और बाद में समाजवादी पार्टी से अलग हुए कार्यकर्ताओं को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का झंडाबरदार बनते भी देखा। दो साल बाद मौसम एक बार फिर घूमकर अपने मुकाम पर आता दिख रहा है। समाजवादी विचार से जुड़े लोगों का दावा है कि अगर कोरोना काल की विषम स्थितियां सामने नहीं आतीं तो अब तक अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और शिवपाल सिंह यादव व आदित्‍य यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का संगम हो चुका होता।
दोनों ही राजनीतिक दल के कार्यकर्ता एक साथ मिलकर काम करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो चुके हैं। समाजवादी पार्टी की लीडरशिप भी पूरी तरह से उन लोगों को साथ लेने के लिए तैयार है जो शिवपाल सिंह यादव के साथ चले गए हैं। इसकी वजह भी राजनीतिक है। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने देख लिया कि बहुजन समाज पार्टी के साथ झुककर समझौता करने के बावजूद उन्‍हें लोकसभा चुनाव में मात खानी पड़ी। यहां तक वे अपनी पत्‍नी डिंपल यादव की हार भी नहीं टाल सके।
इसके पहले जब उनके पास चाचा शिवपाल सिंह यादव की ताकत हुआ करती थी तो पूरे क्षेत्र में चुनावी जीत के लिए उन्‍हें किसी का मुंह नहीं देखना पडता था। डिंपल यादव और मुलाय‍म सिंह यादव का चुनाव प्रबंधन तो शिवपाल सिंह यादव ही देखा करते थे। चाचा की नाराजगी का खामियाजा उन्‍हें दूसरे चुनाव क्षेत्रों में भी भुगतना पड़ा है दूसरी ओर शिवपाल सिंह यादव भी अब अखिलेश यादव की लीडरशिप को पूरी तरह स्‍वीकार करने के लिए तैयार हैं।
शिवपाल सिंह यादव ने नया राजनीतिक संगठन बनाया। लेकिन जमीनी हकीकत से सामना हुआ तो पता चला कि चुनावी जीत के लिए समाजवादी राजनीति की जो जमीन उन्‍होंने तैयार की है उसका बड़ा हिस्‍सा अब भी समाजवादी पार्टी के ही साथ है। ऐसे में वह भी समाजवादी पार्टी के साथ आने के लिए तैयार हो गए हैं। विधानसभा में उनकी सदस्‍यता बचाकर अखिलेश यादव भावनात्‍मक संदेश देने में कामयाब रहे हैं। समाजवादी पार्टी से जुड़े लोगों के अनुसार दोनों राजनीतिक दल सिद्धांत रूप में पहले से ही एक साथ थे, दोनों की विचारधारा एक ही है।
ऐसे में संगठन का मिलन केवल औपचारिकता भर ही है जो किसी भी उचित समय में पूरा हो जाएगा। दोनों राजनीतिक दलों का चूंकि संगठन अलग–अलग है। ऐसे में जब तक संयुक्‍त राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित न किया जाए तब तक मिलन की औपचारिकता अधूरी रहेगी। ऐसे में बहुत संभव है कि दिसंबर माह के अंत तक जबकि कोरोना भी पूरी तरह निष्‍प्रभावी हो चुका होगा तो राजधानी लखनऊ में एक विशाल कार्यकर्ता रैली का आयोजन किया जाए। इस रैली के माध्‍यम से जमीनी स्‍तर पर कार्यकर्ता और मतदाता को सीधा संदेश दिया जा सकेगा।

 अखिलेश तिवारी लखनऊ 

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